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___ भगवान महावीर ।
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सुधर्माचार्य एवं अन्य शिष्य। " जैवत दयावंत सुगुरुदेव हमारे,
संसार विषम खार सों जिनमक उपारे ।। जिन वीरके पीछे यहाँ निर्वानके थानी ।
बासठ वर्षमें तीन हुए केवलज्ञानी ॥ फिर सौ वर्षमें पांच ही श्रुतकेवली भये ।
सर्वांग द्वादशांगका उमंग रस लये ॥ 3वंत दयावंत सुगुरु देव हमारे, संसार विषम खार सों जिनमत उघारे ॥ . .
श्रीविधर वृन्दाग्नदास । इन्द्रमूति गौतमके अतिरिक्त दश गणधर और थे, यह भगवानके मुख्य शिष्य थे। भगवान महावीरकै संघमें चार प्रकारके आचारके अनुयायी मनुष्य थे। प्रथम प्रकारके शिष्य मुनि वा श्रमण कहलाते थे, इनकी संख्या १४००० थी, इन्हीकी प्रतिष्ठा संघमें सर्वोच्च थी और इनके चारित्रके नियम भी अति दुर्धर थे। श्वेताम्बर दृष्टिसे यह संघ-अंग नौ गणोंमें विभक्त था और प्रत्येक गणके मुनिजन एक गणघरके आधीन रहते थे।
'लाइफ ऑफ महावीर' नामक पुस्तक (पृष्ठ ९६) में इन गणधरोके नामादिना एक उत्तम नकशा संभवतः श्वेताम्बर दृष्टिसे दिया हुआ है उससे हम जानसके हैं कि
(१) प्रथम मुख्य गणघर इन्द्रभूति गौतम, गौतम गोत्रके थे और उनके गणमें ५०० मुनि थे।