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________________ भगवान महावीर । दिखला रहा है और ऐसे स्थानपर जहां आत्मवादके विषयमें अभी भ्रम फैला हुआ है। रूसके प्रख्यात तत्ववेत्ता काउन्टलिओ टालस्याय एक राजषी ठाठके अधिकारी थे। परन्तु उसमें , उनकी आत्माको शान्ति नहीं मिली, और उन्होंने अन्यमार्गका अवलम्बन लिया। आज भारतमे महात्मा गांधीका चरित्र आंखोके सामने है। तभी तो जैन कवि कहता है किः"जो जगके सुखमें सुख होवहि, तौ किम् कानन जावहि राजा । कोटि विलासि तजहिं किहि कारण, छांडहिं वे किम राज समाजा॥ सूझ परे जब ही उनको, निनका घर ध्यान सुधारहि काना । रे मन! तोहि न सूझ परै, जगके सुख चाह न लागत लाना।" ____ बात यह है संसारमें विदून त्याग और संयमके कुछ भी प्राप्त नहीं होसका । अल्प कार्योंके लिए लव त्यागकी जरूरत है, तब परम सुख प्राप्ति जैसे महान कार्यके लिए कितने नवडे त्यागकी आवश्यकता होगी ? हिन्दूशास्त्रोंमें भी इस त्यागके महत्वका वर्णन शिवजीके लिए पार्वतीके तप करनेके वर्णनसे प्रकट है। तुलसीदासनी इसका उल्लेख इस प्रकार करते है:"ऋषनि गौरि देखी तह कैसी, मूरतवंत तपस्या जैसी।" वस्तुतः किसी भी सफलताके लिए किसी न किसी रूपमें त्याग-तप-संयमकी आवश्यका है। हम भगवान महावीरके विषयमें पहिले ही देख चुके है कि वे बाल्यकालसे ही संसारसे विरक्त थे। उन्हें संसारके भोगोमें आनन्द नहीं भासता था। उन भोगोंका रसास्वादन करते हुए भी
SR No.010403
Book TitleMahavira Bhagavana
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamtaprasad Jain
PublisherDigambar Jain Pustakalay
Publication Year
Total Pages309
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size12 MB
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