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पूर्वभव-दिग्दर्शन |
समाधिसे जीवनका अन्त कर प्रीतिवर्धन विमानमें देव वहाँपर अनेक प्रकारके सुखोंको भोगता हुआ रहने लगा । अध्ययन चय कर यह देव क्षेमद्युति नगरके राजा धनंजयके यहां वितः ही नामका पुत्र हुआ । बुद्धि वैभवमें भरपुर था और विशेष के निज था । इसके चक्रवर्तिकी विभूति थी । इसने भक्तिभावात्नशील विभूति प्राप्तिके उपलक्ष में जिनेन्द्रदेवकी पूजा की थी । एवं उसको भूमंडलपर अपना राज्य स्थापित किया था । और उच्य जगह भोगोपभोगका रसास्वादन किया था । अन्तमे इस च तीर्थकर भगवानके समवशरणमें जाकर धर्मको सुनते हुए हैं कि र्गको जानकर चक्रवर्तीकी दुरंत विभूतिको भी तृणको तरनें सुख दी थी और क्षेमंकर आचार्यके निकट दीक्षा ग्रहण की थी । रा सक्ते, व्रतपूर्वक मृत्युको प्राप्त होकर उसने रुचक विमानमें दैवी सग्ह सब प्राप्त किया था । सक्ती
वह देव वहांसे आकर भरतक्षेत्रके पूर्वदेशकी श्वेत् भले ही नगरीके अधिपति नंदवर्धनकी महषी वीरवतीके नंदन नामक न प्रदान हुआ । नंदवर्धनके पिहिताश्रव मुनिके निकट दीक्षा लेए हम-' षा इसे नंदन राज्याधिकारी हुए थे और राज्यभोग किया था । ए. मुनिमहाराजके निकट आपने अपने पूर्व भव सुने थे, जिस ग्य उत्पन्न होगया और वह मुनि होगए । शील संयम क्र पालते हुए वे समाधिसे देहत्याग करके पुप्पोत्तर विमानमे दे'
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यही देव पुष्पोत्तर विमानसे आकर भगवान महावीरं यल भी प्य शरीरमें अवतीर्ण हुए थे ।
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