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भगवान महावीर |
त्याग कर दशवें स्वर्गमें देव हुआ। यह देव वहांसे आकर पोदनपुरके अधिपति बाहुबलीके रानी मृगवतीके, गर्भसे त्रिपिष्ट नामक चक्रवर्ति हुआ । विशाल राज्य व अनुपम सुन्दरियों और अनन्य उत्तम सामिग्रीका उपभोग करके और हिसादि कृत्यों में रत रहकर रह नरक गतिके दुःख सहता रहा । अन्तमें वहांसे निकलकर विपुलसिंह पर्वतपैर सिह हुआ ।
वह सिंह हिंसा कृत्यसे मरकर नरकमें गया और पुनः वराह नामक पर्वत पर सिंह हुआ और वहां पर हिस्र पशुओंकी मांति जीवन व्यतीत करने लगा; परन्तु उसके पूर्वके शुभोदयसे उसी समय अमितकीर्ति अमितप्रभू नामक दो चारण मुनियोंने उसको धर्मका उपदेश दिया और उसे हिसादि कार्योंसे दूर हटाया ! इन शुभ भावोके प्रभावसे वह मरकर सौधर्म स्वर्ग में हरिध्वन नामका प्रसिद्ध देव हुआ । यह देव वहांसे आकर कच्चदेशके हेमपुरके राजा कनकामके कनकव्वज नामका पुत्र हुआ। कनकध्वज सानन्द अपनी रानीके साथ कालयापन करता था कि एक मुनिके निकट धर्म श्रवण कर दिगम्वरीय दीक्षा ग्रहणकर, शुद्ध चारित्रका अनुसरण करने लगा। आयुके अन्तमें सल्लेखना व्रतसे मरकर आठवें स्वर्गमें देव हुआ । देवानंद नामक यह देव स्वर्गोके भोग भोगते भी वीतराग जिन भगवानको हृदयमें धारण किये रहता था।
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फिर उज्जयनी नगरीके अधिपति वत्रसेनकी महिषी मुशीलाके गर्मसे हरिषेण नामका पुत्र यही देव हुआ । श्रावकके व्रतों च राज्यलक्ष्मीको धारण करनेवाला यह हरिषेण अन्तमे सुप्रतिष्ट नामक मुनिके निकट साबु होगए और उत्कृष्ट चारित्रका पालन कर