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पर्वभव - दिग्दर्शन
भार्या गौतमीके गर्मसे यह देव अग्निसह नामक पुत्र हुआ। यहां भी यह सन्यासियोंके धर्मका आचरणकर मृत्युको प्राप्त हो सनत्कुमार खर्गमें भारी विभूतिका धारक देव हुआ । वह देव भरतक्षेत्रके मंदिर नामक पुरमें गौतम ब्राह्मणके यहां अग्निमित्र नामक पुत्र हुआ । और फिर भरकर देव हुआ । पुनः स्वस्तिमती नगरी में संतशयन ब्राह्मणके भारद्वाज पुत्र हुआ । सन्यासीका तप तपा और जीवनको पूर्णकर स्वर्गमें देव हुआ। वहां देवाङ्गनाओंमें विशेष आशक्त रहा, और उनके वियोगके भयसे संतप्तचित्त रोता रोता मरकर दीर्घकाल तक नरक, एकेन्द्रिय दोइन्द्रिय योनियों में भटकता रहा । पापके भारको काटकर शुभ प्रकृतिके उदयसे यह राजगृह नगर में सांडिल्य ब्राह्मणके पाराशरी नामक स्त्रीसे स्थावर नामक पुत्र हुआ । मस्करी – सन्यासीका तपकर ब्रह्मस्वर्ग में जाकर उत्पन्न हुआ । पुनः राजगृह नगरके अधिपति विश्वभूतिके यहां यह देव विश्वनन्दी नामका पुत्र हुआ। राजा विश्वभूति अपने भाई विशाखभूतिको राज्य देकर " साधुमार्गमें रत हुआ ! विश्वनन्दी युवराज पद पर थे । विशाखभूतिका पुत्र विशाखनन्दीको विश्वनन्दीसे ईर्षा हुई । इस हेतु चाचा भतीजोंमें युद्ध हुआ । विश्वनन्दीको विजयलाभ भी हुआ । पर वह वैराग्यको पा साधु हो गया । विशाखभूति भी मुनि होगया । विशाखनन्दी पर राज्य भार चला नहीं अतः राज्यभ्रष्ट होगया । विश्वनन्दी मुनि मयुरा में जारहे थे कि बैलसे धक्का खाकर गिर पड़े । विशाखनन्दी भी निकटमें था । उसने इनका उपहास किया । विश्वनन्दी क्रोधके वशीभूत हो प्राण
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