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मुद्रित दृग खोलो।" यहाँ कवि ने मानव को प्रकृति के माध्यम से कर्मशील जीवन का सन्देश देते हुए कहता है कि मानव को अपने आलस्य तन्द्रा क्लान्ति एवं अवसाद को त्यागकर अपने कर्मपथ में जुट जाना चाहिए। बहती इस विमल वायु में 'व' की आवृत्ति का बार-बार आना, अनुप्रास के समाहित होने का सूचक है।।
___ कवि निराला ने शायद अपने काव्य-जीवन में पहली बार एक शोषित, प्रताड़ित एवं समाज में अपमान का घूट पीकर रहने वाली शोषित नारी के जीवन का इतना करीब से देखा जाँचा और लेखनी के माध्यम से परखा भी है उसी शोषित एवं विवशता से युक्त नारी का चित्र कवि ने काव्य में उतारा है::
"देखते देखा मुझे तो एक बार उस भवन की ओर देखा छिन्नतार;
जो मार खा रोई नहीं
सजा सहज सितार । महाकवि की यह रचना एक प्रगतिवादी काव्य की अभूतपूर्व रचना है यहाँ निराला सदृश्य विशालकाय एवं स्वस्थ व्यक्ति को देखकर उसने सामने के भवन की ओर देखा उसने अपने फटे कपड़ों में से झाँकते हुए शरीरांगों की ओर दृष्टिपात् किया और यह सब किया एकान्त समझकर। साथ ही साथ वह काँप भी उठी, उसके माथे से पसीने की बूंद नीचे गिर गयी। वह अपने पत्थर तोड़ने के बाद काम में फिर पूर्ववत् लग गयी यहाँ सजा सहज सितार में 'स' आवृत्ति बार बार हुई है अनुप्रास अलंकार का पुट स्पष्ट झलक रहा है।
1. प्रभावी : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ – 196 2. तोड़ती पथरः निराला रचनावली भाग(1):पृष्ठ-342
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