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________________ कलि यानी नवयौवन नायिका के बाल का खुलकर विखरना 'क' की आवृत्ति का बार-बार प्रयोग अनुप्रास को स्वयंमेव स्थान देता है। छायावादी कविता की कोमलकान्त पदावली, वर्णन की सजीवता एवं संगीतात्मकता द्रष्टव्य है, विप्रलम्भ-श्रृंगार के अर्न्तगत नायिका की स्मरण दशा का सुन्दर चित्र निराला जी ने खींचा है। "सुमन भर लियं सखि बसन्त गया। हर्ष-हरण-हृदयः नहीं निर्दय क्या?" कवि एक नायिका का दूसरी नायिका से उसकी विह्वल और पश्चाताप का वर्णन कराते हुए कहलवाता है कि वे सखि! बसन्त ऋतु तो बीत गयी पर तुमने फूल एकत्र नहीं किए अर्थात् प्रिय- मिलन के अवसर पर संकोचवश पूर्ण संभोग-सुख प्राप्त नहीं किया। हृदय की प्रसन्नता का हरण करने वाला वह स्मरण बड़ा ही कठोर है। यहाँ कवि हर्ष, हरण, हृदय (हृदय के हर्ष को हरने वाला) में 'ह' की आवृति का कई बार प्रयोग कर कवि ने अनुप्रास को जगह दी छायावादी काव्य की एक और विशेषता है कि वह प्रकृति को सिर्फ एक सुन्दर नायिका के रूप में ही नहीं देखता अपितु उसे उपदेशिका के रूप में ग्रहण करता है। साथ ही साथ भारतीय जन-मानस के कर्म के सद्मार्ग पर चलकर आगे बढ़ने की प्रेरणा भी देता है: "बहती इस विमल वायु में वह चलने का बल तोलो-: 1 'शेष'- निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 155
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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