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छायावादी कवियों में राष्ट्र प्रेम कूट-कूटकर भरा हुआ था, उसमें से निराला जी का सारा जीवन कठिन परिस्थितियों में होते हुए भी राष्ट्र के लिए ही समर्पित रहा करता था। यहॉ कवि निराला भारत-माता की बन्दना करते हुए कहते है कि:
"मूर्ति अश्रु जल धौत विमलः
दृग जल से पा बलि-बलि कर दूं।" कवि निराला बड़े ही बोझिल मन से कहते हैं हे! भारत-माता दुःख सहन करके मुझको जो शक्ति प्राप्त हो और उसके द्वारा मैं इस जन्म में कुछ कृत-कर्म करके उसके पूजा-फल को मैं तेरे ऊपर न्योछावर कर दूँ। दुःख और त्याग में ही जीवन का प्रकाश निहित है। किसी ने ठीक ही कहा है कि "रंगलाती है हीना, पत्थर पर घिस जाने के बाद ।" बल-बलि (न्योछावर करना) में 'ब' की आवृत्ति कई बार हुई है अनुप्रास की झलक स्पष्ट है। कवि निराला ने भारतीय जनमानस में मानों जनजागरण का कार्य किया:
"किरण-दृक्-पात, आरक्त किसलय सकल;
शक्त द्रुम, कमल-कलि -पवन-जल -स्पर्श-चल ।"2 देश के जो लोग राष्ट्र की धारा में नहीं शामिल हुए थे राष्ट्रीयता का भाव भरने के सफलता पायी। इस प्रकार स्वतन्त्रता की आवृति का कई बार आना अनुप्रास का द्वैतक है।
अस्त होते हुए सूर्य तथा उस समय के वातावरण आसमान में छाई लालिमा आदि के सौन्दर्य का चित्र कवि ने अपने काव्य में उतारा है:
"अस्ताचल रवि, जल छल-छल-छवि
1. मातृ-बन्दना : अपरा : पृष्ठ -28 2. जगा दिशा का ज्ञान : अपरा : पृष्ठ -29