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________________ स्तब्ध, विश्वकवि, जीवन उन्मन ।।" कवि ने इस कविता में प्रकृति का वर्णन आलम्बन के रूप में किया है सम्पूर्ण वातावरण शान्त है मानों सम्पूर्ण राष्ट्र चिरनिद्रा में सो रहा है ऐसे में छल-छल-छवि के ध्वन्यात्मकता के कारण प्रकृति बहुत ही हृदयग्राही बन गयी है। छल-छल-छवि की ध्वनि की आवाज मानों कोई संगीतमय धुन हो, और रात के शान्तिमय वातावरण को मधुर ध्वनि के माध्यम से एक अलग मादकता प्रदान करती हैं। इसमें अनुप्रास अलंकार की उपस्थिति है। कवि निराला देशवासियों को अंग्रेजियत से दूर होकर, लोगों को राष्ट्र-भाषा एवं भारतीय संस्कृति से जोड़ने का प्रयास करते हैं। कवि यहाँ राष्ट्रभाषा की वन्दना करते हए कहता है कि: "बन्दूँ पद सुन्दर तव; छन्द नवल स्वर गौरव। जननि-जनक-जननि-जननि; जन्म भूमि-भाषे ।। कवि निराला ने हिन्दी साहित्य में पहली बार मुक्त छन्द का प्रयोग कर छन्द एवं संगीत का समन्वय किया था, वह संगीतात्मक लय को काव्य के लिए अनिवार्य मानते थे, कवि का स्पष्ट मत था कि कविता यदि लयवद्ध हो तो पाठक या श्रोता स्वयमेव काव्य की तरफ आकर्षित होते चले आएगें। इस प्रकार कविता का अर्थ पाठक के मस्तिष्क में रच-बस जाएगा। जननि, जनक, जननि-जननि यानि (पिता, माता की माता) में 'ज' की आवृत्ति एक से अधिक बार हुई है अनुप्रास का पुट झलकता है। 1. अस्ताचल रवि : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 246 2. 'बन्दूँ पद, सुन्दर तब' : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 247 98
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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