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का बार-बार आह्वान करता है कान्ति का। यहाँ 'बार-बार' की आवृत्ति एवं 'सुन-सुन' की आवृत्ति दो बार हुई है, स्वाभाविक रूप से अनुप्रास ने अपनी जगह उपरोक्त काव्य में बनायी है।
निराला जी देशवासियों को आत्म-जागरण की प्रेरणा देते हैं और उनको स्वयं आत्मावलोकन करने की सलाह देते हैं:
"सहृदय-समीर जैसे पोंछो प्रिय, नयन-नीर शयन शिथिल बाँहें, भर स्वाप्निल आवेश में, आतुर उर वसन-मुक्त कर दो
सब सुप्ति सुखोन्माद हो;" कवि कहता है, हे देशवासियों तुम अपनी चेतना पर पड़े हुए निकिव्यता के इस भार को दूर करके चैतन्य हो उठो। सहृदय समीर यानी शीतल और मन्द-वायु, शयन शिथिल यानी सोकर उठने से शिथिल पड़ी हुई हैं। सब सुरित सुखोन्माद आदि में अनुप्रास का अभिनव प्रयोग कवि ने किया है।
इसी तरह 'पावन करो नयन' नामक काव्य से प्रकृति से उदात्त भाव प्रेरणा ग्रहण करते हुए कहते हैं कि :
"पावन करो नयन! रश्मि, नभ-नील-पर
स्पप्न-जागृति सुघर दुःख-निशि करो शयन!"2
1. जागो फिर एक बार भाग (1) : अपरा : पृष्ठ - 14 2. पावन करो नयन : अपरा : पृष्ठ - 19