________________
निर्दय विप्लव की प्लावित माया, यह तेरी रण-तरी। भरी आकांक्षाओं,
घन मेरी से सजग सुप्त अंकुर ।।" आलम्बन रूप में प्रकृति-वर्णन छायावादी कवियों की प्रमुख विशेषता रही है। इस काव्य में निराला ने प्रकृति के कोमल रूप के साथ-साथ उसकी कठोरता का भी वर्णन किया, यहाँ कवि भारतीय संस्कृति की सरलता एवं साथ ही साथ कठोरता का भी उल्लेख किया है। यहाँ कवि ने 'समीर-सागर' यानी हवा रूपी समुद्र एवं 'सजग सुप्त' यानी सोए हुए अविकसित में अनुप्रास अलंकार को बखूबी स्थान कवि ने दिया है। साथ ही साथ कवि की कान्तिकारी भावना समुद्र की लहरों की तरह हिलोरे मार रही है।
इसी प्रकार कवि 'निराला' ने अपने 'बादल राग ‘कविता के माध्यम से सम्पूर्ण भारतीय जनता को राष्ट्र के लिए कुछ कर गुजरने का आह्वान करता
"बार-बार गर्जन वर्षण है मुसलाधार। हृदय थाम लेता संसार।
सुन-सुन घोर वज्र हुंकार।। निराला ने देशवासियों का आह्वान करते हुए कहा है कि कान्ति का बिगुल बजा दो, क्योंकि कान्ति की ऑधी के आगे बड़े-बड़े गर्वीले वृक्ष धराशायी हो जाते हैं। अर्थात् कान्ति की लहर जब हिलोरे मारने लगती है तो उससे कितना ही चतुर पतवार हो टिक नहीं पाता। यहाँ बार-बार गर्जन यानी जनता
1. बादल-राय-6 : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 135 2. बादल-राय-6 : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 135