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शेर उनके शिकार के लिए दौड़ता हो, यहाँ कवि जयसिंह! के माध्यम से इनको एक अवसर दे रहा है कि देश-सेवा से बढ़कर और कोई कार्य नहीं, फिर कवि देश के सभी नागरिको को विशेषकर जो उदासीन है, चापलूस है, उनमे राष्ट्रीयता का संचार कर रहा है और जयसिंह के मध्यम से कहता है:
"धीमान् कहते हैं तुम्हें लोग जय सिंह! सिंह हो तुम खेलो शिकार खूब हिरनों का याद रहेशेर कभी मारता नहीं है शेर, केसरी, अन्य वन्य पशुओं का शिकार करता हैं।"
निराला लौह-पुरूष थे। आर्थिक, सामाजिक, पारिवारिक किसी प्रकार की वाधाएं उनके मजबूत कन्धों को झुका नहीं पायी। वो आजीवन एकाकी समस्त समाज से जूझते रहे, उनका यह अदम्य साहस 'छत्रपति शिवाजी' कविता में शिवाजी के क्षत्रियत्व के साथ प्रकट हुई, स्वाभाविक है कि कवि का जन्म परतन्त्र भारत में हुआ था। देश गुलामी की बेड़ियों में जकड़ा हुआ था, इस गुलामी के लिए कवि फिरंगियों से अधिक जिम्मेदार स्वयं अपने देशवासियों को मानता है, कवि यहाँ के बुद्धजीवियों विशेषकर पढ़े-लिखे पूँजीपति वर्ग को कोसते हुए कहता है कि तुम सभी को लोग विद्वान कहते हैं तुम कैसे विद्वान हो मैं माना कि तुम विद्वान हो तुम्हें राष्ट्र की सुविधाओं के दोहन का हक है परन्तु जरा सोचो! जिस प्रकार शेर कभी शेर का शिकार नहीं करता उसी प्रकार तुम
1. 'महाराज शिवाजी का पत्र' : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ-162
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