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सर्वहारा वर्ग को मधु की उपमा से संबोधित किया है, कवि कहता है हे गम्भीर स्वर वाले बादल ! तुम इतनी गम्भीरता कठोरता से गरजो कि तुम्हारा स्वर सुनकर प्रत्येक पर्वत भय से काँप जाय और उनसे झर-झर पानी के झरने फूट पड़े तथा पत्ते - पत्ते में नव-जीवन का संचार हो उठे । यहाँ कवि ने प्रकृति का मानवीकरण किया है, भाषा में ध्वन्यात्मकता द्रष्टव्य है ।
विद्रोह का आह्वान :
निराला कांतिकारी कवि हैं । शक्ति का उपासक कवि चुपचाप तत्कालीन व्यवस्था का अन्याय कैसे सह- सकता है? 'महाराज शिवाजी' का पत्र में ऐतिहासिक प्रसंग द्वारा पराधीन राष्ट्र के सुप्त संस्कारों को जगाते हैं :
"आ रही है याद अपनी मरजाद की,
चाहते हो यदि कुछ प्रतिकार ।
तुम रहते तलवार के म्यान में,
आओ वीर स्वागत् है।
सादर बुलाता हूँ,
है जो बहादुर समर के ।
वे मर के भी,
माता को बचायेगे ।
शत्रुओं
खून से,
धो सके यदि एक भी तुम माँ का दाग ।
कितना अनुराग देशवासियों का पाओगे । निर्जर हो जाओगे
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