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से अत्यन्त मार्मिक है, चाहे वर्ण-योजना हो बिम्ब-रचना हो, या लय विधान, सभी मे विरोध शोध जटिलता आदि गुणों का अत्यन्त चमत्कृत प्रयोग किया गया है। अपने युग की विषम परिस्थितियों के विरूद्ध कवि की प्रतिभा का संघर्ष अथवा विजय का विश्वास।
कथा-वस्तु का सूक्ष्म-चरित्र-चित्रण सदा अपेक्षित नहीं है महाकवि की ये विशेषता रही है कि थोड़े से सारगर्भित शब्दों में एक विशद् चित्र खींच देते है। उन्होने संसार को प्राण संघात का सिन्धु कहा इतने से ही शक्ति की लहरों का चित्र सामने आ गया। सदा उदात्त-युक्त एक ही रचना में निरन्तर उदात्त-स्वर ही सुनाई दे तो श्रोता भी विचलित हो उठेगा। इसीलिए तो कहा जाता है कि निराला का काव्य विरोधी तत्वों का सन्तुलन है। उदात्त एवं अनुदात्त का समन्वय। अन्धकार एवं प्रकाश (मशाल) का समन्वय। 'राम की शक्ति-पूजा' में एक ओर राम का पराजित मन है तो दूसरी ओर लक्ष्मण का अमोद्य तेज है एक ओर कवि मे आवेग से युक्त युद्ध की विभिषिका का वर्णन है तो दूसरी ओर माँ द्वारा राम को राजीव नयन कहा जाना विरोधी तत्वों की वह विषमता और उनका सन्तुलन, विषम-वस्तु, मूर्ति-विधान और छन्द प्रवाह सर्वत्र देखा जा सकता है। महाकवि के काव्य में प्रवाह है लेकिन फैलाव नहीं है भावना धनीभूत होकर कम से कम शब्दों में प्रकट होती है। निराला का काव्य सहज अथवा सुबोध नहीं है। इसका कारण कुछ लोग भाषा की क्लिष्टता मानते है, जबकि सच ये है कि भाव की गहराई व्यंजना का बॉकापन शब्दों की ध्वनि और छन्द की लय का अनूँठापन भी इसका कारण है थोड़ा परिश्रम करने पर जैसे मिल्टन के उदात्त काव्य का रस मिलने पर उसके आगे अन्य कवियों की रचनाऐ फीकी लगती हैं, वैसे ही निराला काव्य का एक बार रस मिलने पर दूसरे कवि कम अच्छे लगेंगें।