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स्थिर राघवेन्द्र को हिला रहा फिर-फिर संशय, रह-रह उठता जन जीवन में रावण-जय-भय, जो नहीं हुआ आज तक हृदय रिपु दम्य श्रान्त; एक भी अयुत-लक्ष में रहा जो दुरा कान्त, कल लड़ने को हो रहा विकल वह बार-बार;
असमर्थ मानता मन उद्यत हो हार-हार।" यहाँ निराला के राम जो कि एक सामान्य मानव हैं उनके विरूद्ध महाशक्ति हैं। जो राम की सारी युक्तियों को अपनी माया से धराशायी कर देती है। महाशक्ति अन्याय का प्रतीक रावण का साथ देने लगती है, महाशक्ति को रावण का पक्ष लेना मानो, चाँद की शीतलता को ग्रहण लग गया हो ऐसे संघर्षरत् पात्रों के नाटकीय अंतर्द्वन्द लक्ष्मण, हनुमान, विभीषण आदि की पृष्ठभूमि के लिए प्रकृति का यह दृश्य कवि ने उकेरा है। निराला के राम युद्ध-भूमि से वापस आकर गहन मंत्रणा में लग जाते हैं, हर किसी के मन में युद्ध का आवेग तो है लेकिन अपने आराध्य एवं युद्ध के मुखिया राम के अगले ओदश की प्रतीक्षा में है, उस अवसर पर रात्रि के समय का चित्र खींचा है महाकवि ने । अमावस्या की रात है, आकाश निरन्तर अन्धकार का बमन कर रहा है। अर्थात् आकाश में निरन्तर अन्धकार बढ़ता जा रहा है परिणाम स्वरूप दिशाओं का ज्ञान, दिशाओं का सूचक संकेत चिन्ह लुप्त हो गए हैं और पवन का संचार अवरूद्ध हो गया है पर्वत के पीछे विशाल समुद्र निर्बाध वेग से गर्जन करता हुआ उमड़ रहा है उधर पर्वत मानों समाधिस्थ हो गया है। अन्धकार के आतंक से साँस रोककर खड़ा हुआ है, सच तो यह है कि 'राम की शक्ति पूजा' में प्रकृति का चित्रण पूरी तरह मनोवैज्ञानिक तथा शैली वैज्ञानिक दोनों दृष्टियों
1 राम की शक्ति पूजा : निराला रचनावली भाग(1) पृष्ठ - 330 द्वितीय अनामिका : 23
अक्टूबर 1936