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________________ काव्य भाषा के विकास - क्रम में कुछ गीत गजलों की परम्परा में बहुत ही अच्छे बन पड़े हैं, जिनमें हिन्दी और उर्दू के शब्दों का समन्वय कुछ इस प्रकार का हो गया है मानों कविता के प्रवाह में बह रहे हैं "गिराया है जमीं होकर, और छुटाया आसमाँ होकर । निकाला, दुश्मनेजॉ; और बुलाया मेहरबाँ होकर । चमकती धूप जैसे हाथवाला दबदबा आया, जलाया गरमियाँ होकर, खिलाया गुलसिताँ होकर उजाड़ा है कसर होकर, बसाया है असर होकर, उखाड़ा है वॉ होकर लगाया बागबाँ होकर ।"1 'निराला के काव्य-भाषा के विकास - क्रम में उनके कुछ शब्द - प्रयोगों का उल्लेख करना आवश्यक होगा:- विशेषकर वहाँ जहाॅ कवि ने हिन्दी-उर्दू शब्दों का समन्वय या समास से नई रचनात्मकता विकसित करना चाहा है, किन्तु वे प्रयोग सफल नहीं बन पड़े हैं, जैसे: “जड़ता तामस, संशय, भय, बाधा, अन्धकार, दूर हुए दुर्दिन के दुःख, खुले बन्द द्वार जीवन के उतरे कर; आँखों को दिखा सार; - छुई बीन नये तार कस-कस कर | 2 'नए पत्ते' में सपाट - बयानीः- 'नए पत्ते' 1946 भाषा और संवेदना दोनों सन्दर्भो में कवि का विशिष्ट संकलन है । कविता को तमाम वाह्य उपकरणों से मुक्ति दिलाकर उसे स्वायत्त बनाने की चेष्टा 'नए - पत्ते' की खास विशेषता है। इस संकलन में संग्रहीत कविताओं की सपाट – बयानी हिन्दी कविता की एक अप्रतिम 1. गिराया है जमीं होकर .. बेलाः निराला रचनावली भाग ( 2 ) - पृष्ठ 2. वही राह देखता हूँ: बेलाः निराला रचनावली भाग ( 2 ) पृष्ठ - 175 42 - 138
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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