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________________ उपलब्धि है। बेहद ठंडक पड़ने से सारी फसल नष्ट प्राय हो गयी है, खेतिहर निराश हो चुके हैं, कवि इस कठोर ऋतु के वर्णन को प्रमाणिक बनाने के लिए उसी से 'सिरजी" भाषा का उपयोग करता है और तभी उसकी अनौपचारिकता में भरा-पूरा व्यक्तित्व उभरता है "एक हफ्ते पहले पाला पड़ा था अरहर कुल की कुल मर चुकी थी । हवा हाड़ तक बेध जाती है गेहूँ के पेड़ ऐंठे खड़े हैं, खेतिहरों में जान नहीं मन मारे दरवाजे कौड़े ताप रहे हैं एक दूसरे से गिरे गले बातें करते हुए कुहरा छाया हुआ।।” सुखद आश्चर्य इस एहसास से उपजता है कि ऐसी बेलौस भाषा 'स्वशब्द वाच्यत्व 2 से एकदम अलग है। और यहीं पर कविता कविता बनती है। नारेबाजी प्रचार के विल्कुल विपरीत । 'अरहर' का कुल का कुल मरना, हवा का हाड़ तक बेधना, गेहूँ के पेड़ का ऐठें खड़ा होना, बेजान खेतिहरों का एक दूसरे से गिरे - गले बातें करना, यह है शब्दों की बनाबट, जिसमें पाले की स्थिति सजीव हो उठती है 1 निराला की काव्यात्मक सर्जना का अन्तिम रूप:- निराला के काव्य विकास कम का अन्तिम सोपान 'अर्चना', आराधना', 'गीत-गुंज' और 'सान्ध्य काकली' के रूप में सामने आता है। इन सभी संग्रहों में कुछ पुरानी रचनाएँ और कुछ नयी 1. 'सिरजी' का शाब्दिक अर्थ - निर्मित पानी बनी हुई । 2. 'स्वशब्द वाच्यत्व' - एक पारिभाषिक शब्द है यथा जिस रस में कविता की जाए उसमें उस रस का नामोल्लेख न किया जाए, 'स्वशब्द वाचक' शब्द वाचक शब्द का दोष है कि हास्य रस की कविता में हास्य शब्द का प्रयोग नहीं होना चाहिए। कवि जिस विषय को वर्णित करना चाहता है उसका नामोल्लेख नहीं करता । 43
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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