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________________ शम्मा है परवाना है चूँकि यहाँ दाना है ।।" 'बेला' में कवि का भाषिक - प्रयोगः- विराट रचना के परिपेक्ष्य में ऐसी भी रचना कवि के भाषा अधिकार की द्योतक है । कवि का यह संग्रह मूलतः भाषिक प्रयोग है, जिसमें कवि ने उर्दू गजलों की ख़ानी और लोकप्रियता से प्रभावित होकर उन्हें हिन्दी गीतों में ढालने की साहसिक कोशिश की हैं। लेकिन यह साहसिकता सर्जन के स्तर पर महत्वपूर्ण नहीं। खासतौर से कवि की विराट - रचना - प्रक्रिया के परिपेक्ष्य में। हिन्दी शब्दों के अपनी विशिष्ट प्रकृति है और (यह बात हर भाषा के संबंध में सच है।) जिससे वे गजलों की संवेदना को उनके खास ढ़ंग के लोच को बहन करने में फारसी -उर्दू शब्दावली की तरह सक्षम नहीं हो सकते । इतना जरूर है कि खडी बोली के खड़ेपन को संवारने में एक खास ढ़ंग से ये कृतकाय हुए हैं, इनमें उच्चारण संगीत की प्रतिष्ठा हुई है जो इन गीतों के प्रणयन में कवि का एक विशिष्ट उद्देश्य रहा है। गजलों की परम्परा से अलग कुछ गीत अपनी प्रकृति में बहुत रचनात्मक बन पड़े हैं। "मिट्टी की माया छोड-चुके जो, वे अपना घट फोड़ चुके । नभ की सुदूरता से ऊँचें जीवन के क्षण अब हैं छँछे, आकर्षण के अभियानी के गतिकम को जब वे तोड़ चुके । "2 1. 'चूँकि यहाँ दाना है' अणिमा निराला रचनावली भाग - 2, पृष्ठ-114 2. 'मिट्टी माया छोड़ चुके' - बेला - निराला रचनावली ( 2 ) - पृष्ठ - 137 - 41
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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