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________________ माधुरी और कविता का औदात्य मिलकर एक अपूर्व रागात्मक अनुभूति का सृजन करती हैं। "गवैया मात्र संगीत की शब्दावली का इस्तेमाल करते हैं कविता के तत्व से मेल नहीं हो पाता, निराला ने संगीत की माधुरी को भी पैदा किया है, साथ ही साथ कविता के अस्तित्व की रक्षा भी की है। संस्कृतनिष्ठ शब्दों का भरपूर और सर्जनात्मक उपयोग करते हुए कवि ने 'गीतिका' के गीतों में गंभीर चिन्तन, सांस्कृतिक सन्दर्भों, विविध प्रणय-स्थितियों को अनुस्यूत करने की सफल चेष्टा की है। संगीतात्मकता को केन्द्र में रखकर रचे गये इन गीतों में कविता के अनुभव को और कविता की रचना - प्रक्रिया को अक्षत रखने की सजगता है। 'गीतिका' की भूमिका में निराला ने लिखा है- "प्राचीन गवैयों की शब्दावली संगीत की रक्षा के लिए, किसी तरह जोड़ दी जाती थी । इसीलिए उनके काव्य का एकान्त अभाव रहता था। आज तक उसका यह दोष प्रदर्शित होता है। मैंने अपनी शब्दावली को काव्य के स्वर से भी मुखर करने की कोशिश की है ।" " 1 कवि का शिल्पी रूप 'परिमल' की अपेक्षा 'गीतिका' में अधिक उभरा है, उसमें एक तो संस्कृत के नाद तत्व को, उसकी संगीतात्मका को, उसकी समास परकता को हिन्दी के ग्रहणशील रूप में घुलाने - पचाने की कोशिश है। 'गीतिका' की दुर्बोधिता के कारण (छोटे-छोटे शीर्षक) निराला जी की कविताओं में 'विनयपत्रिका' का प्रभाव पड़ा, दीर्घ—समास - बहुला पदावली का प्रभाव निराला जी की 'गीतिका' में पर्याप्त मात्रा में देखा जा सकता है। 'अनामिका' में कवि की परिवर्तित मनः स्थितियाँ: कवि का चौथा संकलन 'अनामिका' (1937) के रूप में प्रकाशित हुआ, जो कवि के प्रथम काव्य-संकलन 'अनामिका' के अतिरिक्त था इसे 'द्वितीय अनामिका' भी कहा जाता है। इस संकलन में तत्सम् शब्दावली पर आत्मविश्वास अधिक मुखरित हुआ है। 'प्रेयसी', 'रेखा' जैसी लम्बी प्रणय कविताओं में कवि ने धारा प्रवाह रीति से 1. 'गीतिका' - 'भूमिका' - पृष्ठ - 12 33
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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