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________________ दुर्दशा करवाओगे-वह जाओगे।" यहाँ 'तिनका-सा' में उपमा है, यहाँ कवि ने यह बताया है कि प्रबल धारा को रोकने का हठ करोगे तो तुम भी बह जाओगे। कहने का तात्पर्य यह है कि कविता के प्रवाह को छन्दों में नहीं बाँधा जा सकता अर्थात् कविता स्वछन्द ही रहनी चाहिए। क्योंकि वह अतरात्मा की अत॑वेदना से निकलती है। उपमाओं एवं अति-युक्तियों का उचित-प्रयोग: निराला काव्य में उपमा अपना विशिष्ठ महत्व रखता है 'जागो फिर एक बार' (भाग दो) शीर्षक कविता उपमा को दर्शाने का एक सशक्त उदाहरण है: "सत् श्री अकाल भाल-अनल धक-धक कर जला भस्म हो गया था काल भेद कर सप्तावरण-मरण-लोक, शोकहारी! पहुंचे थे वहाँ जहाँ आसन है सहसार-12 यहाँ कवि मातृ-भूमि के हित में बलिदान होने वाले सिख वीरों के बलिदान का प्रशस्ति करता है। व्योमकेश के समान में उपमा है। यहाँ योग-शास्त्र और काव्य-शास्त्र का सफल सामंजस्य है। अतीत के गौरव-गान द्वारा देश प्रेम का स्वर व्यंजित है। सप्तावरण-चेतना के सातस्वर इन्हें विभिन्न प्रकार से अभिहित किया जाता है। हठयोग में इन्हे सात-चक, राज-योग में सात शरीर कहते हैं। ये सप्तावरण मूल प्रवृत्ति या पदार्थ के सात स्वरों के 1. धारा : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ - 84 2 जागो फिर एक बार भाग (2) : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ - 153 156
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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