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गया है। इस कविता में भाषा प्रवाह देखते ही बनता है।
'वनबेला' निराला जी की एक बहुत ही महत्वपूर्ण कविता है जिसमें मानवीकरण तथा उपमा का उत्कृष्ट उदाहरण है:
"वर्ष का प्रथम पृथ्वी के उठ उरोज मंजू पर्वत निरूपम
क्षोभ से, लोभ से, ममता से; उत्कंठा से प्रणय के नयन की समता से सर्वस्व दान
देकर, लेकर सर्वस्व प्रिया का सुकृत मान। यहाँ प्रकृति का मानवीकरण किया गया तपन-यौवन-क्षोभ लोभ-ममता-समता में पद-मैत्री है, तपन-यौवन में रूपक भी है, प्रकृति का आलम्बन रूप में वर्णन है ग्रीष्म की तपन के माध्यम से निराला ने ओज की मधुर व्यंजना की है, कोमलकान्त पदावली में निहित संगीतात्मकता दृष्टव्य है।
'धारा' शीर्षक कविता में कवि निराला यौवन के वेग की अबाध प्रवलता की चर्चा करते हैं:
"सुना, रोकने उसे कभी कुंजर आया था, दशा हुई फिर क्या उसकी ? फल क्या पाया था? तिनका जैसा-मारा-मारा फिरा तरंगों में बेचारा गर्व गँवाया-हारा; अगर हठ-वश आओगे
1. बनवेला : निराला रचनावली भाग एक : पृष्ठ - 345
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