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परिचय - परिचय पर खिला सकल-:
नभ, पुथ्वी, द्रम, कलि, किसलय - दल । ।"
महाकवि निराला जैसा व्यक्तित्व ही अपनी पुत्री की यौनोचित चंचलता का चित्र खींच सकता है। सच्चाई ये है कि यहाँ कवि पिता कम कवि ज्यादा ही दिखाई देता है। स्वाभाविक रूप से कोई कवि कविता लिखते समय अगर रिश्ते-नाते को महत्व देता है। तो वह कविता कविता हो ही नहीं सकती क्योंकि कोई कविता, कविता तभी बन सकती है जब वह अंर्तरात्मा की आवाज से निकलती हैं । कवि जब कविता लिखने बैठता है तो उसका सारा ध्यान उस कविता पर होता है, रिश्ते गौड़ हो जाते हैं। यहाँ कवि 'ज्यों मालकौश!' 'नैश स्वप्न ज्यों में उपमा का प्रयोग किया है।
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महाकवि निराला 'जूही की कली' कविता के माध्यम से रति - कीड़ा का काल्पनिक चित्र प्रस्तुत करते समय नायिका के भावनाओं के अंर्तमन् को उद्घाटित करता है, नायिका रूपी कली को पवन पहुँच कर चूमता है। मगर वह जगती नहीं है। कवि यहाॅ प्रकृति का मानवीकरण कर एक दूसरे को आलिंगन रूप में प्रदर्शित करने का सफल प्रयास किया है।
"सोती थी;
जाने कहो कैसे प्रिय - आगमन वह ?
किवा मतवाली थी यौवन की मदिरा पिये; कौन कहे ? 2
1. 'सरोज- स्मृति' : निराला रचनावली भाग ( 1 ) – पृष्ठ 2. जूही की कली : निराला रचनावली भाग (1) – पृष्ठ
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