________________
कवि निराला 'यमुना के प्रति पूरे कविता में रहस्यवाद' की मार्मिक व्यंजना की है। साथ ही साथ दार्शनिक दृष्टिकोण को माध्यम बनाया गया, सोए जन-मानस को जगाने के लिए। शशि-सा, मुख, ज्योत्सना सी गात में उपमा अलंकार का अद्भुत समावेश है।
'प्रेयसी' काव्य के माध्यम से कवि निराला लौकिक श्रृंगार संबंधी भावनाओं की अभिव्यक्ति करते हैं। नायिका का यौवन उभार पर है, शारीरिक परिवर्तन से खुद नायिका के मन में कौतुहल व्याप्त है, वह अदृश्य संसार मे गोते लगाना चाहती है:
"घेर अंग अंग को; लहरी तरंग वह प्रथम तारूण्य की ।
शिशिर ज्यों पत्र पर कनक प्रभात के;
किरण-सम्पात से। कवि की नायिका युवावस्था के आगमन के साथ ही चंचलता ने मेरे अंग-प्रत्यंग को घेर लिया है। प्रकृति को उदीपन के रूप में ग्रहण किया गया है। प्रकृति में नवयौवन नायिका को चित्रांकित किया गया है। यहाँ 'लता-सी' एवं 'शिविर ज्यों' में उपमा अलंकार परिलक्षित होता है।
छायावादी कवियों की एक प्रमुख विशेषता रही है कि वे काव्य लिखते समय रिश्ते नाते या सगे संबंधो को बीच में आने ही नहीं देते थे। तभी तो महाकवि निराला अपनी ही पुत्री ‘सरोज' के यौवनावस्था का भावपूर्ण चित्रण किया है :
"धीरे-धीरे फिर बढ़ा चरण; बाल्य की केलियों का प्रागण;
1. 'प्रेयसी' : निराला रचनावली भाग (1) - पृष्ठ - 324
139