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संस्कृत-निष्ठ होने पर भी अर्थ प्रतीति बाधित नहीं होती है। ज्योति के पत्र एवं राजीवनयन में रूपक स्पष्ट परिलक्षित होता है।
कवि निराला ग्रीष्म की तपन के माध्यम से ओज की मधुर व्यंजना की है यहाँ कवि निराला ग्रीष्मकालीन प्रकृति का वर्णन करता हैं :
"वर्ष का प्रथम,
पृथ्वी के उठे उरोज मंजू पर्वत निरूपम ।
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सर्वस्व दान;
देकर लेकर सर्वस्व प्रिया का सुकृत मान ।। "
प्रकृति के सौन्दर्य में नारी सौन्दर्य का दर्शन छायावादी कवियों की विशेषता हैं। यहाँ कवि निराला ने अपनी नायिका के अन्तःप्रकृति और - प्रकृति का सुन्दर समन्वय किया हैं तपन - यौवन में रूपक का सुन्दर समावेश हैं
बाह्य
इसी प्रकार कवि यमुना को देखकर पिछली बातों की याद करता है, याद करने के साथ वह वेसुध सा हो जाता है कवि यमुना को सम्बोधित करते हुए कहता है कि:
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"स्वप्नों-सी उन किन आँखों की;
पल्लव - छाया में अम्लान ।
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तेरे दृग कुसुमों की सुषमा; जाँच रहा है बारम्बार ?"2
1. वन - बेला : निराला रचनावली भाग ( 1 ) : पृष्ठ - 114 2. यमुना के प्रति निराला रचनावली भाग ( 1 ) : पृष्ठ
- 114
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