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यहाँ कवि अतीत के माध्यम से वर्तमान राष्ट्रप्रेमियों को अपनी सांस्कृतिक विरासत का वास्ता दिलाकर राष्ट्र के नव-निर्माण के लिए एकजुट होकर नई दिशा देने का आह्वान करता है निराला की यह कविता राष्ट्रप्रेम एवं सांस्कृतिक प्रेम का द्योतक है पल्लवछाया दृग-कुसुम में रूपक अलंकार दृष्टव्य है।
___ कवि निराला यहाँ 'स्मृति' का मानवीकरण करके मन के भावों का सजीव चित्रण करते हैं
"जटिल जीवन में नद तिर-तिर; डूब जाती हो तुम चुपचाप!
सुप्त मेरे अतीत के ज्ञान,
सुना, प्रिय हर लेती हो ध्यान! यहाँ कवि ‘स्मृति' का आह्वान करते हुए कहता है कि जब तुम मेरे पास आती हो तो हमें सब पुरानी बातें याद हो जाती हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि हम फ्लैश-बैक में वापस अतीत में चले गए हों और उसको अपनी स्मृतियों के द्वारा लेखनी के माध्यम से सजो रहे हैं। यहाँ कवि जीवन -गद्य में रूपक का प्रयोग हुआ है। कवि निराला यौवन के वेग की अबाध प्रवलता का उल्लेख करता हुआ कहता है कि नव जीवन के प्रवल उमंग के साथ संसार के सीमा को पार करके परमात्मा से मिलने चली आर रही हूँ :
"बड़े दम्भ से खड़े हुए थे भूधर समझे थे जिसे बालिका
एक पर दृष्टि जरा अटकी है
1. स्मृति : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ – 84
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