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यहाँ 'जूही की कली' का चित्रण स्वकीया नायिका की है कवि निराला प्रकृति का आलम्बन रूप में वर्णन करते हैं, नायक के मन में इच्छा हुई कि वह किसी तरह इसी समय अपनी प्रियतमा के पास पहुँच जाए । विछुड़न में भी मिलन का एहसास विरोधाभास का लक्षण है।
___ यहाँ भी छायावादी कवियों की तरह निराला ने प्रकृति को अपने काव्य में भरपूर दोहन किया है यहाँ कवि सन्ध्या का वर्णन एक सुन्दरी रमणी के रूप में किया है।
"तिमिरांचल में चंचलता का नहीं कहीं आभास; मधुर-मधुर हैं दोनों उसके अधर;
किन्तु गम्भीर नहीं है उसके हृास -विलास ।।" सच तो यह है कि सन्ध्या को सुन्दरी बताना ही काव्य -परम्परा के प्रति निराला जी के विद्रोह का घोतक है। जैसे सन्ध्या के आगमन के साथ भू-तल पर अन्धकार फैलने लगता है। अन्धकार से भरा हुआ अंचल एक दम शान्त है क्योंकि सांयकाल के समय वातावरण शान्त हो जाता है। उस सुन्दरी की मुख-मुद्रा कुछ गम्भीरता लिए हुए है और उसमें हास-विलास को व्यक्त करने वाली चेष्टाओ का अभाव है। यहाँ मिलन एवं बिछुडन का विरोधाभास मुखर है।
यहॉ कवि एक भक्त के माध्यम से साधना-पथ- की तरफ अग्रसर होते हुए दिखाया गया हैं भक्त देवी की प्रार्थना करते हुए कहता है कि:
"प्रात तव द्वार पर; आया, जननि, नैश अन्ध, पथ पार कर लगे जो उपल पद हुए उत्पल ज्ञात,
1. सन्ध्या-सुन्दरी : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 77
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