________________
छायावादी कवियों की एक और विशेषता थी कि वे नायिका के अन्तरंग एवं बहिरंग दोनो प्रकार के चित्र खीचें हैं। महाकवि निराला इस काव्य में विप्रलम्भ श्रृंगार के अर्न्तगत् नायिका के स्मरण दशा का वर्णन किया है:
"सुमन भर न लिए;
सखि ! बसन्त गया।
हर्ष-हरण-हृदय;
नहीं निर्दय क्यों? 1
कवि निराला ने एक सखि कैसे अपनी सणि से अंतर्मन् की बात करती है उसे दर्शाने का सफल प्रयास किया है, हे सखि ! बसन्त ऋतु व्यतित भी हो गयी मैंने फूलों के अपनी झोली में भर कर इकट्टा नहीं किया मन के हर्ष को हरण करने वाली वियोगावस्था निर्दयी है क्या ? प्रश्नांलंकार का पुट स्पष्ट झलक रहा है ।
'विरोधाभास' :
आर्चाय केशव के अनुसार "जहाँ वास्तविकता में विरोध न हो फिर भी वर्णन से विरोध का आभास मिले वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है।
छायावादी कवियों ने प्रकृति को अपने काव्य की जीवन संगिनी की तरह अपनाया है। उसी तरह यहाँ निराला ने भी 'स्मृति' संचारी के रूप में जूही की कली' की रति-क्रीड़ा का काल्पनिक चित्र अंकित करते हुए कहता है कि:"आयी याद बिछुड़न से मिलन की वह मधुर बात,
आयी याद चाँदनी की धुली हुई आधी रात,
आयी याद कान्ता की कम्पित कमनीय गात फिर क्या ? पवन । "2
1. शेष : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ -155 2. जूही की कली : निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ
126
-41