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________________ नख-शिख शैली पर किया गया है। अधरों एवं कुंचित केशों का सुन्दर वर्णन तिमिरांचल में चंचलता का नही कहीं आभास; मधुर मधुर है दोनों उसके अधर गुंथा हुआ उन धुंधराले काले बालों से हृदय-राज्य की रानी का वह करता है अभिषेक।" सन्ध्या का समय है चारों ओर अंधकार एवं गंभीरता का साम्राज्य है उस गम्भीर वातवरण में केवल एक तारा ही चमक रहा है प्रत्यक्षतः यह किसी शहर की सन्ध्या नही है यह किसी गॉव की सन्ध्या है जहाँ सूर्यास्त के साथ सब काम काज बन्द हो जाते हैं। मधुर-मधुर और काले-काले में पुनरूक्ति प्रकाश झलकता है। कवि निराला बादल से विनयावत् हो कर निवेदन करता है कि नव-जीवन निर्माण के लिए राग-रंग का वातावरण हितकर नहीं है इसी कारण कवि मेघ से गर्जन की प्रार्थना करता है वह उसके प्रलयंकारी रूप में नवीन सृष्टि के निर्माण का दर्शन करता हैं : "घन,गर्जन से भर दो वनः तरू-तरू पादप पादप-तन। भौरों ने मधु पी-पीकर माना, स्थिर-मधु ऋतु कानन।।2 1. सन्ध्या-सुन्दरी : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ-77 2. गर्जन भर दो वनः निराला रचनावली भाग एक: पृष्ठ- 245 118
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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