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________________ कवि निराला बादल से प्रार्थना करते हैं कि ऐसी वर्षा करो की समूचा वातारण हरियाली से परिपूर्ण हो जाए। तरू-तरू, पादप-पादप एवं गुंजन-गुंजन में पुनरूक्ति अलंकार का समावेश है। कवि राम-रावण के युद्ध का वर्णन करता है राम की सेना युद्ध से बिरत होकर अपने शिविर की ओर गमन कर रही है, एक तरफ अन्याय का प्रतीक रावण के खेमे में उल्लास का वातारण है दूसरी तरफ राम की सेना भारी मन से अपने शिविर की ओर आ रही है : "लौटे युग-दल, राक्षस पद-तल पृथ्वी तलमल विंध महोल्लास से बार-बार आकाश विकल उतरा ज्यों दुर्गम पर्वत पर नैशान्धकार चमकती दूर ताराएँ ज्यों हो कहीं पार ||1 सन्ध्या के वातावरण की पृष्ठभूमि में राम ने मन का अंतर्द्धद चित्रित है। यह छायावादी कविता के अमूर्त विधान की विशेषता है। सांकेतिक शैली द्वारा प्रकृति का रूपायन किया गया है । राक्षसों के अट्टास की गर्जना से गुंथकर आकाश बार-बार विकल हो रहा है बार-बार में पुर्नरूक्ति अंलकार है। कवि निराला ग्रीष्मकालीन प्रकृति का चित्र खींचते हुए उसका मानवीकरण करने का सफल प्रयास किया है। "पुलकित शत शत व्याकुल कर भर चूमता रसा को बार-बार चुम्बित दिनकर xxx सर्वस्व दान; 1. राम की शक्ति पूजा निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 329 119
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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