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फिर-फिर!" उपरोक्त काव्य में प्रकृति का कोमल रूप के साथ-साथ कठोर रूप का भी वर्णन किया गया है यहाँ फिर-फिर का भाव गुड़गुड़कर में पुनरूक्ति प्रकाश झलक रहा है।
निराला जी कहते है कि वे भारतवासियों! युगो की निद्रा त्यागकर अब भी तो जाग जाओ यानी कवि यहाँ जागरण का सन्देश देते हुए कहता है कि:
"उगे अरूणांचल में रविः
आयी भारती-रति कवि-कण्ठ में, xxx
ऐसे ही संसार के बीते दिन, पक्ष मास वर्ष कितने ही हजारजागो फिर एक बार!"2
कवि का इशारा स्पष्ट है कि यदि सकल प्रकृति में जागरण ही लहरें तरंगायित हैं, ऐसी स्थिति में भारतवासियों को कर्तव्य से विमुख होकर सोते रहना ठीक नहीं हैं इसमें कवि आत्मानुभूति की जागरा का कारण बताता है और वासना के पंथ में लिप्त भारतवासियों को जगाता है। सच तो ये है कि इस काव्य में कवि ने प्रकृति में नित नए परिर्वतन का आभास दिलवाया है। क्षण-क्षण यानी (जल्दी-जल्दी) में पुनरूक्ति प्रकाश दिखाता है।
सन्ध्या-कालीन निस्तब्ध वातावरण का सजीव चित्र कवि ने अपनी कविता में उकेरा है। प्रकृति में नारी का दर्शन छायाकारी काव्य शैली की विशेषता यहाँ दृष्टव्य है। सन्ध्या-सुन्दरी का स्वरूप वर्णन रीतिकाल की
1. बादल-राग भाग-6 : निराला रचनावली भाग(1) पृष्ठ-135 2. जागो फिर एक बार भाग 1)- निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 77
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