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निराला के काव्य मे कभी-कभी दार्शनिक दृष्टिकोण दिखाई पड़ता है, कवि यहाँ किसी अलौकिक प्रिया को सम्बोधित करते हुए कहता है कि:
"कहा जो न, कहो!
नित्य-नूतन प्राण अपने बॉधती जाती मुझे कर-कर
व्यथा से दीन!।।" कवि निराला मृत्यु के संबंध मे दार्शनिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। कवि का कहना है कि मृत्यु भी वस्तुतः एक प्रकार की मुक्ति है क्योंकि वह सांसारिकता से छुटकारा देती है। कवि की यहाँ अलौकिक प्रिया एकनिष्ट होकर प्रेम करना चाहती है इसी में इसको सर्वस्व मिल जाएगा। वैसे यह संसार अनन्त है यानी सीमाहीन है। कवि यहॉ जन-मानस को मरने से न डरने की चेतावनी देता है।
पुनरूक्ति प्रकाश
जहाँ पर भावों मे बल देने के लिए एक शब्द की दो या दो से अधिक बार आवृत्ति हो या किसी कथन को रमणीक बनाने या एक शब्द के बलाघात को प्रदर्शित करना पुनरूक्ति अलंकार की श्रेणी में आता है। जैसे:
कवि निराला ने प्रकृति का वर्णन आलम्बन के रूप में बार-बार किया है, कवि ने प्रकृति के उतार-चढ़ाव, पतझड़ एवं बसन्त बहार का सुन्दर समावेश इस कविता में भी देखने को ये मिलती है।
"तिरती है समीर-सागर पर; अस्थिर सुख पर दुःख की छाया ताक रहे है, ऐ विप्लव के बादल!
1. मरण - दृश्य : निराला रचनावली भाग (1)- पृष्ठ-359
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