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"वायु-व्याकुल शतदल-सा हाय;
विफल रह जाता है निरूपाय ।" कवि निराल 'स्मृति' का मानवीकरण करके मन के भावों का सजीव चित्रण करते हैं। यहाँ कवि सोये हुए अतीत के गीतों को सुनाकर मेरा ध्यान अपनी ओर खींच लेती हो। अर्थात् तुम्हारे आते ही मुझको सब पुरानी बातें याद आ जाती हैं। कवि उस समय के तेज वायु के द्वारा झकझोरे हुए कमल पुष्पों से भरे हुए तालाब की भाँति असहाय होने के कारण केवल व्याकुल होकर रह जाता है। इस प्रकार कवि के उपरोक्त काव्य में सम्बोधन का भाव स्पष्ट है।
छायावदी कवि अगर अपने काव्य में प्रकृति को अधिक स्थान दिया है तो साथ ही अतीत का उदाहरण देकर वर्तमान में जीने की कला भी बतलाई, यहाँ भी 'खंडहर के प्रति' नामक कविता के माध्यम से भारत के अतीत गौरव का वर्णन करते है:
"खंडहर! खड़े हो तुम आज भी?
अद्भुद अज्ञान उस पुरातन के मलिन साज!"2 किसी ने ठीक ही कहा है कि खंडहर बता रहे हैं कि इमारत अजीम थी। उपरोक्त पंक्ति के माध्यम से कवि भारतवासियों को अतीत की गौरवगाथा सुनाकर भारतीयों में नव-उत्साह भर कर देश की मुख्य धारा के जुड़ने का आह्वान करता है। कवि की यह कविता खंडहर के प्रति देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत है। यहाँ कवि अतीत के खंडहर के धूल को माथे पर उसी प्रकार लगाने का आह्वान करता है कि जिस प्रकार किसी पूर्वज के आर्शीवाद को अपने माथे पर लगाकर एक अलग सुकून प्राप्त होता है।
1. "स्मृति' :निराला रचनावली भाग एक पृष्ठ-81 2. खंडहर के प्रतिः निराला रचनावली भाग एक पृष्ठ-81
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