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अनिवार्य मानते थे यहाँ सम्भवतः उन्होंने इसी अभिनव साधना की ओर संकेत किया है। कवि के सम्पूर्ण काव्य में मातृ-भाषा प्रेम मुखर हुआ है। निराला जी कहते हैं, हे! माता तुम प्रत्येक पाठक को प्रसन्न करके उसको नवीन ज्योति प्रदान कर दो।
कवि कहना चाहता है कि ज्ञान और सम्पत्ति के समन्वय द्वारा ही देश की प्रगति सम्भव है। स्वामी विवेकानन्द के व्यवहारवादी पाश्चात्य जीवन-दर्शन का प्रभाव कवि पर स्पष्ट परिलक्षित होता है क्योंकि महाकवि जीवन को जीना पश्चिम बंगाल में सीखा था तथा विवेकानन्द को काफी करीब से जाँचा परखा
"जागो, जीवन-धनिके! विश्व-पण्य-प्रिय वणिके!
खोलो उषा-पटल निज कर अयि,
छविमयि, दिन-मणिके!" कवि निराला सरस्वती की वंदना करते हुए कहता है कि, हे माँ तुम अपने ज्ञान-रूपी प्रकाश से सम्पूर्ण राष्ट्र का आलोकित कर दो जिससे अन्धकार रूपी अज्ञान की कालिमा छट जाए। वह आह्वान करते हुए कहता है, हे माँ जागो! भारत दुःख के भार से दब रहा है इसको सहारा दो। यहाँ महाकवि विनयावत होकर माँ सरस्वती को सम्बोधित करते हैं।
महाकवि निराला 'राम की शक्ति पूजा' नामक काव्य में हीनभावना से ग्रस्त हैं जब कोई भी मानव हीन भावना से ग्रस्त होता है। तो उसे अपने जीवन का अर्थ ही समझ में नहीं आता एवं अन्दर ही अन्दर आत्मग्लानि महसूस करने लगता है और कवि के राम स्वयं अपने आप से कह उठते हैं कि:
1. 'जागो जीवन धनिके': निराला रचनावली भाग एकः पृष्ठ-256 ।।
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