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" धिक् जीवन को जो पाता ही आया विरोध; धिक् साधन जिसके लिए सदा ही किया शोध ! जानकी ! हाय उद्धार प्रिया का न हो सका ।
वह एक मन और रहा राम का जो न थका; ""
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साधना की समाप्ति के समय दुर्गा ( महाशक्ति) राम की पूजा का कमल रूपी पुष्प चुरा ले जाती है! जब राम को एक सौ आठवॉ कमल नहीं प्राप्त हुआ तो वे विचलित हो उठे, फिर उन्हें तुरन्त याद आया कि माँ मुझे सदा राजीवनयन कहती थी फिर क्या था राम अपनी आँख चढ़ाकर अनुष्ठान पूरा करना चाहते थे। तब तक महाशक्ति उनका हाथ पकड़ लेती है, और राम को सहयोग का वचन देती है। लेकिन एक सौ आठवाँ कमल गायब हो जाता है तो निराला के राम अपने को धिक्कारते हुए आत्मग्लानि महसूस करते हैं । यहाँ कवि निराला ने आत्मग्लानि एवं संशय का अद्भुत समावेश किया है।
छायावादी कवियों द्वारा पूर्वजों एवं बुजुर्गो का सम्मान कोई नयी बात नहीं है। वैसे भी हमारी संस्कृति में बुजुर्गों को अनुभव एवं सलाह के सर्वोत्तम स्थान दिया गया है, कवि निराला ने बुजुर्ग जाम्बवान से राम को सलाह देते हुए रूपायित किया गया है
" हे पुरूष सिंह ! तुम भी यह शक्ति करो धारण;
आराधन का दृढ़ आराधन से दो उत्तर,
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शक्ति की करो मौलिक कल्पना करो पूजन;
छोड़ दो समर जब तक न सिद्धि हो रघुनन्दन । "2
1. राम की शक्ति - पूजा : निराला रचनावली : भाग (1) पृष्ठ 2. राम की शक्ति पूजाः निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ - 335
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