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अपने इस कविता के माध्यम से जागृति एवं कर्मशीलता की प्रेरणा देते हुए आह्वान करता है कि :
"प्रिय मुद्रित दृग खोलो! गत स्वप्न-निशा का तिमिर-जाल; नव किरणों से धो लो
मुद्रित दृग खोलो!" कवि प्रकृति में अज्ञात शक्ति का दर्शन कर जीवन की प्रेरणा ग्रहण करता है। निराला राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए आह्वान करते हैं कि हे राष्ट्रवासियों अँधेरा छंट गया है। सूर्योदय हो रहा है उठो और नई ऊर्जा, के साथ नई शक्ति के साथ राष्ट्र निर्माण में तन-मन-धन से लग जाओ और देश विकास के पथ पर ले जाओ। कवि यहाँ भी राष्ट्र को सम्बोधित करते हुए जन आह्वान कर रहा है।
छायावादी कविओं ने वैसे मातृ-भाषा को महत्पूर्ण स्थान दिया है। लेकिन इसमें निराला जी का मातृ-भाषा प्रेम सर्वविदित है। ऐसा मालूम पडता है कि राष्ट्रीयता एवं मातृ-भाषा प्रेम इस महामानव के रंग में कूट-कूट कर भरी हुई है:
"दृग-दृग को रंचित कर अंजन भर दो भरदृग-दृग की बँधी सुछवि;
बॉधे सचराचर भाव!" निराला ने हिन्दी साहित्य में पहली बार मुक्त छन्द का प्रयोग कर छन्द एवं संगीत का समन्वय किया था। वह संगीतात्मक लय को काव्य के लिए
1. प्रभाती : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ-196 2. बन्दूँ पद सुन्दर तव : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ – 247
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