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"एक बार बस और नाच तू श्यामा! सामान सभी तैयार, कितने ही है असुर, चाहिए कितने तुमको हार? कर-मेखला, मुण्ड-मालाओं से बन मन अभिरामा
एक बार बस और नाच तू श्यामा!" कवि यहाँ महाशक्ति से प्रलय अर्थात् जन-कान्ति का आह्वान करता हुआ कहता है कि हे अदृश्य शक्ति एक बार भारतीय जन-मानस को अन्दर तक ऐसा झकझोर दे कि समूचा समाज राष्ट्रीय-भावना से ओत-प्रोत होकर तात्कालिक व्यवस्था के खिलाफ उठ खड़ा हो, कवि का इशरा साफ था कि एक बार अगर समूचा राष्ट्र इन फिरंगियों के खिलाफ विद्रोह का बिगुल बजा दे तो ये फिरंगी इग्लैड़ का रास्ता पकड़ लेंगे और हम देश-वासी गुलामी की दासता से मुक्ति प्राप्त कर लेगें बस आवश्यकता है तो एक जन-कांन्ति की । उपर्युक्त कविता में 'म' की आवृत्ति का बार-बार का आना अनुप्रास की झलक दिखाता
छायावादी कवियों में निराला ही ऐसे कवि हैं जो अपनी विफलता को भी काव्य में स्थान देते हैं। अपनी कमियों को स्वयं दर्शाना कोई सामान्य कवि के बस की बात नहीं :
"प्रेम हाय आशा का वह भी स्वप्न एक था।
विफल हृदय तो आज दुःख ही दुःख देखता ।।"2 कवि एक विरहिणी को माध्यम बनाते हुए अपनी हृदय की विफलता का चित्र सजीव तरीके से खींचा है। यहाँ कवि के काव्य में अभिव्यक्ति लौकिक होते हुए भी रहस्यात्मक बन गयी है। कवि प्राचीन स्मृतियों को अपने हृदय में समेटे
1. आवाहन : निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 85 2. विफल वासना : निराला रचनावली भाग (1)- पृष्ठ -77
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