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________________ अभी न होगा मेरा अन्त ।"" कवि निराला अपने आर्दश के अनुरूप आचरण करके, समाज के समस्त दुःखों को दूर करके, सुख का वातावरण उत्पन्न करना चाहते हैं वह चाहते हैं कि समाज कष्ट एवं क्लेष से निजात पा ले । 'द' की आवृत्ति अनुप्रास को परिलक्षित करती है । कवि की अंर्तरात्मा उसे झकझोरते हुए कहती है कि हे! परमात्मा हम असहाय के लिए अपने स्नेहमयी द्वार खोल दे और उसको अपने शरण में ले लो, या यों कहें की कवि निराला आत्मा का परमात्मा से मिलन करवाना चाहते हैं: "स्नेह रत्न, मैं बड़े यत्न से आज कुसुमित कुंज- द्रुमों से सौरभ साज। "2 निराला के इस काव्य में रहस्यमयी काव्य - भावना मुखर है। आत्मा परमात्मा में लीन होना चाहती है यानी अहंकार का उन्मूलन ही मानव को परमात्मा से मिलवा सकती है । कवि यहाँ स्पष्ट करना चाहता है कि अगर समाज का, राष्ट्र का, सच्चा प्रेम तुझे चाहिए तो सबसे पहले आप अंहकार का परित्याग करो फिर स्नेहमयी वर्षा से आप स्वयमेव सराबोर हो जाएगें । कुसुमित कुंज में 'क' की आवृत्ति का बार-बार आना अनुप्रास अलंकार की उपस्थिति दर्ज कराता है। कवि निराला का काव्य अनेक संभानाओं से परिपूर्ण है । कवि जहाँ रहस्मययी भावना से ओत-प्रोत है तो वही अदृश्य शक्ति का आह्वान करते हुए कहता है कि: 1. ध्वनि: निराला रचनावली भाग (1) पृष्ठ 2. अंजलि : अपरा पृष्ठ-112 - 106 126
SR No.010401
Book TitleLonjanas ke Tattva Siddhanta Adhar par Nirla Kavya ka Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPraveshkumar Sinh
PublisherIlahabad University
Publication Year2002
Total Pages187
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size14 MB
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