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कवि निराला 'स्मृति' के भावों का मानवीकरण करते हुए मन के भावों का सजीव चित्रण करने का प्रयास करते हैं कवि यहाँ अपने पूवजों के अतीत की स्मृति करते हुए कहता है कि:
"विजन-मन-मुदित सहेलरियाँ स्नेह उपवन की सुख, श्रृंगार; आज खुल खुल गिरती असहाय,
विटप वक्षः स्थल से निरूपाय।" कवि निराला यहाँ प्रकृति के माध्यम से पूर्वजों एवं बुर्जुगों की मनोदशा का चित्रण करते हए कहते हैं कि जो लोग अब तक हमारे देश की राष्ट्र की या परिवार की शोभा बढ़ाते थे, मेरे परिवार के आवश्यक अंग थे। वही अब असहाय एवं अनाथ से दिखते हैं। कवि का इशारा साफ है कि भारतीय संस्कृति कभी पूर्वजों एवं बुजुर्गों को अपमान करने की इजाजत नहीं देती है, अपितु हमारी संस्कृति का मूल-मंत्र ही है कि पूर्वजों एवं बुजुर्गों की सेवा तथा उनके द्वारा प्राप्त आर्शीवाद ईश्वर के प्रसाद सदृश्य है। 'म' 'ब' 'स' की आवृत्ति बार-बार होने से अनुप्रास स्पष्ट झलकता है।
कवि निराला ने गरीबी को बहुत करीब से देखा जाँचा और परखा था। आर्थिक विपन्नता से वे अति त्रस्त थे, फिर भी किसी भी कठिन परिस्थिति से उबरने का हुनर अगर किसी कवि में था तो वे महाकवि ही थे कवि विपरीत परिस्थितियों के होते हुए भी जीवन के प्रति आस्था एवं दृढ़ विश्वास दिखाता है। और कह उठता है:
"द्वार दिखा दूंगा फिर उनको; है मेरे वे जहाँ अनन्त
1. स्मृति-निराला रचनावली भाग (1) : पृष्ठ - 140
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