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उपोद्घात
'समयसार' में कुल ४१५ अथवा ४३९ श्लोक हैं ।
'प्रवचनसार' जैनों में बहुत प्रसिद्ध ग्रन्थ है । उसकी प्रतियाँ प्रत्येक दिगम्बर के संग्रह में होती ही हैं । इस ग्रन्थमें दीक्षा लेनेवाले साधकके लिए उपयोगी और आवश्यक उपदेश भरा है । इसकी रचना व्यवस्थित है और इसका निरूपण एक विषयसे दूसरे विषयपर क्रमश: आगे बढ़ता चलता है । इसमें लेखक सिर्फ़ विधान ही नहीं करता वरन सामने उठ सकनेवाली तर्कणाओंकी पहले से ही कल्पना करके उनके समाधानका प्रयत्न करता है । 'प्रवचनसार' वास्तवमें एक दार्शनिक ग्रन्थ है और साथ ही साधकके लिए उपयोगी शिक्षा-संग्रह भी है । सम्पूर्ण ग्रन्थमें किसी समर्थ तत्त्ववेत्ता की लेखनीका प्रभाव स्पष्ट दिखाई देता है और उसकी प्रभावशाली तथा सरल शैलीको देखकर यह प्रतीत हुए बिना नहीं रहता कि यह लेख किसी सच्चे तत्त्वद्रष्टा अन्तरसे उद्भूत हुआ है ।
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प्रस्तुत अनुवाद
इस अनुवादमें इन तीनों ग्रन्थोंका एकत्रित सारानुवाद है । इन तीनों ग्रन्थोंमें स्वतः ही एक प्रकारको ऐसी एकता है कि उनका विषय इस प्रकार एकत्रित किया जा सकता है। कितने ही प्रारम्भिक विषय तीनों ग्रन्थोंमें समान हैं, अतएव उनको पुनरावृत्ति सहज ही हट गयी है । इसके अतिरिक्त प्रत्येक ग्रन्थमें जो कुछ विशेषता है उसकी एक ही पुस्तकमें योजना कर देने से विषयका निरूपण क्रमबद्ध और सम्पूर्ण हो जाता है । हाँ, यह अवश्य स्वीकार करना चाहिए कि ऐसा करनेसे समग्र ग्रन्थ न सिर्फ़ दार्शनिक रह गया है और न एक समर्थ तत्त्ववेत्ताकी अस्खलित रूपसे प्रवाहित होनेवाली तत्त्ववाणी-जैसा ही रह गया है। पंचास्तिकायमें सैद्धान्तिक भाग अधिक है और उपदेश भाग थोड़ा है । 'प्रवचनसार' में सैद्धान्तिक भाग कुछ गौण और साधनामार्गका भाग प्रधान हो जाता है । और 'समयसार' में तो सैद्धान्तिक भाग है ही नहीं, यह कहा जाय तो चल