________________
उपोद्घात
१७ हो गया है। स्कन्द अर्थात् कार्तिकेय शिवके कुमार थे। अतएव इन दोनों नामोंमें कोई खास भेद नहीं रहता। पल्लवोंकी राजधानी कोंजीपुर थी
और वे विद्या तथा विद्वानोंके आश्रयदाता थे, ऐसी उनकी ख्याति है । इसके अतिरिक्त कोंजीपुरम्के शिवस्कन्द वर्मा राजाका एक दानपत्र मिलता है। वह प्राकृतभाषामें है और उसके आरम्भमें 'सिद्धम्' शब्द है। इससे वह राजा जैन था, यह कल्पना की जा सकती है। इसके सिवाय अन्य अनेक प्रमाणोंसे सिद्ध किया जा सकता है कि उसके दरबारकी भाषा प्राकृत थी। अतएव कुन्दकुन्दाचार्यने उस राजाके लिए अपना ग्रन्थ लिखा है, यह माना जा सकता है। पल्लवराजाओंको वंशावली मिलती तो है, फिर भी यह निश्चित नहीं कि शिवकुमार किस समय हुआ है। अतएव कुन्दकुन्दाचार्यका कालनिर्णय करनेमें इस तरफ़से हमें कोई सहायता नहीं मिलती। परन्तु इतना तो अवश्य कहा जा सकता है कि बहुत सम्भव है, पल्लववंशका कोई राजा कुन्दकुन्दाचार्यका शिष्य रहा होगा। श्रीकुन्दकुन्दाचार्यके नाम
कुन्दकुन्दाचार्यके दूसरे नामोंके विषयमें बहुत-से उल्लेख मिलते हैं; और उन नामोंके आधारपर उनके कालनिर्णयमें कोई सहायता मिल सकती है या नहीं, यह अब देखना चाहिए।
'पंचास्तिकाय'को टीकामें जयसेनका कहना है कि कुन्दकुन्दका दूसरा नाम पद्मनन्दी था। परन्तु चौदहवीं शताब्दीके पीछेके लेखोंमें कुन्दकुन्दके पाँच नामोंका वर्णन आता है। जैसे विजयनगरके ई० स० १३८६ के एक शिलालेखमें उनके पाँच नाम इस तरह दिये गये हैं - पद्मनन्दी, कुन्दकुन्द, वक्रग्रीव, एलाचार्य और गृध्रपिच्छ । इनमें-से यह तो बहुत अंशोंमें निर्विवाद है कि कुन्दकुन्दाचार्यका दूसरा नाम पद्मनन्दी था। इसी प्रकार यह भी निर्विवाद है कि वक्रग्रीव और गृध्रपिच्छ, यह दोनों नाम उनके नहीं हैं, भूलसे उनके मान लिये गये हैं। गृध्रपिच्छ तो तत्त्वार्थसूत्रके रचयिता