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कुन्दकुन्दाचार्यके तीन रत्न प्राकृत भाषा न जाननेवालोंके लिए उन ग्रन्थोंके परिचय करनेका मार्ग सुगम बन गया है। दिगम्बर सम्प्रदाय .
आगे बढ़नेसे पहले दिगम्बर सम्प्रदाय और उसके प्रारम्भके इतिहासके सम्बन्धमें जानकारी हासिल कर लेना उचित होगा।
भगवान् महावीरके निर्वाणके पश्चात् ( ई० स० पूर्व ४६७ ) की आचार्य परम्परामें सम्भूतिविजय सातवें हैं। उनकी मृत्युके बाद उनके गुरुभाई भद्रबाहु आचार्य बने । उनका समय भ० महावीरके पश्चात् १७० वर्ष अर्थात् ई० स० पूर्व २९७ वर्ष माना जाता है। उस समय अशोकका पितामह चन्द्रगुप्त मौर्य मगधको राजगद्दीपर था। उसके शासनकालमें मगधमें, बारह वर्षका भयानक अकाल पड़ा। ऐसे समयमें वहां विशाल साधुसंघका धारण-पोषण होना कठिन समझकर भद्रबाहु अपने कतिपय अनुयायी साधुओंको लेकर दक्षिणमें कर्णाट देशमें चले गये। यही घटना दक्षिणमें जैनधर्मके प्रचारका और जैनसंघके दिगम्बर-श्वेताम्बर विभागोंका कारण बनी। ___ मगधमें जो साधु रह गये थे, उनके नायक स्थूलभद्र बने। इन लम्बे बारह वर्षोंके दरम्यान, उत्तर प्रान्तमें रहे हुए और दक्षिण प्रान्तमें गये हुए साधु-संघके आचार-विचारमें भेद हो गया। कहा जाता है कि दुष्कालके समय उत्तर भारतके साधुओंको अपने बहुत-से कठोर आचार नियमोंका त्याग कर देना पड़ा। यह भी कहा जाता है कि दक्षिण भारतमें जानेवाले साधुओंका मुख्य उद्देश्य, दुष्कालके भयानक समयमें अपने व्रत नियमोंको भंग न होने देना ही था। मतलब यह कि दक्षिणमें जानेवाले साधु अपने नग्नत्व आदि आचारोंको भलीभांति सुरक्षित रख सके, जब कि उत्तरके साधुओंको देश और कालका अनुसरण करके सफ़ेद वस्त्र पहननेकी छूट लेनी पड़ी। कहा जा सकता है कि यही बात दिगम्बर -