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English translation preserving Jain terms:
Gatha 152 |
Exposition of Kshapaka-Apakarsana, Nikshepadi
The Nikshepas (depositions) of the Samayuna Avalika (unit of time) are one-third more than the Samayuttara (unit of time). 386. Then, the Nikshepas of the immediately succeeding Utkramana (ascent) are the same as that. The Atichavana (over-deposition) is more by one Samaya (unit of time). 387. Thus, the Atichavana goes on increasing until the Avalika (unit of time) of Atichavana is attained. 388. Thereafter, the Atichavana remains Avalika-matra (equal to the unit of time), but the Nikshepas increase. 389. The maximum Nikshepas are less by two Avalika-samaya (units of time) than the Karmasthanam (status of karmas). 390. The minimum Nikshepas are small. 391. The minimum Atichavana is specially more by two-thirds of the Samayuna Avalika (unit of time). 392. The maximum Atichavana is specially more. 393. The maximum Nikshepas are innumerable times more.
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गा० १५२ |
क्षपक-अपकर्षण- निक्षेपादि-निरूपण
णिक्खेवो समयूणाए आवलियाए तिभागो समयुत्तरो । ३८६. तदो जा अणंतरउमदी तस्से णिखेवो तत्तिगो चेव । अइच्छावणा समयाहिया । ३८७. एवं ताव अइच्छावणा वड्डदि जाव आवलिया अधिच्छावणा जादा त्ति । ३८८. ते परमधिच्छावणा आवलिया, णिक्खेवो वहृदि । ३८९ उक्कस्सओ णिक्खेवो कम्दी दोहिं आवलियाहिं समयाहियाहिं ऊणिगा । ३९०. जहण्णओ णिक्खेवो थोवो । ३९१. जहण्णिया अइच्छावणा समयूणाए आवलियाए वेत्तिभागा विसेसाहिया । ३९२. उक्कस्सिया अइच्छावणा विसेसाहिया । ३९३. उकस्सओ णिक्खेवो असंखेज्जगुणो ।
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है । उस निक्षेपका प्रमाण समयोन आवलीका समयाधिक त्रिभाग है । तत्पश्चात् जो अनन्तर- उपरिम स्थिति है, उसका निक्षेप तो उतना ही होता है, किन्तु अतिस्थापना क समय अधिक होती है। इस प्रकार तब तक अतिस्थापना बढ़ती जाती है, जब तक कि अतिस्थापना पूर्ण आवलीप्रमाण होती है। इससे परे अतिस्थापना तो आवलीप्रमाण ही रहती है, किन्तु निक्षेप बढ़ने लगता है । इस निक्षेपका उत्कृष्ट प्रमाण समयाधिक दो आवलियो से हीन कर्मस्थिति है । इस प्रकार जघन्य निक्षेप अल्प है । जघन्य अतिस्थापना समयोन आवली के विशेषाधिक दो विभागप्रमाण है । उत्कृष्ट अतिस्थापना विशेष अधिक है और उत्कृष्ट अतिस्थापनासे उत्कृष्ट निक्षेप असंख्यातगुणा है ॥३८४-३९३॥
- विशेषार्थ - अपवर्तन किया हुआ द्रव्य जिन निषेकोमे मिलाते हैं, वे निषेक निक्षेपरूप कहलाते हैं । उक्त द्रव्य जिन निषेकोमे नहीं मिलाया जाता है, वे निषेक अतिस्थापना - रूप कहलाते हैं । निक्षेप और अतिस्थापनाका क्रम यह है कि उदयावली- प्रमाण निपेकोमेंसे एक कम कर तीनका भाग दीजिए। इनमें एक रूप- सहित प्रथम त्रिभाग तो निक्षेपरूप है अर्थात् वह अपवर्तित द्रव्य एकरूप - सहित प्रथम त्रिभागमें मिलाया जाता है और अन्तिम दो भाग अतिस्थापनारूप हैं, अर्थात् उनमें वह अपवर्तित द्रव्य नहीं मिलाया जाता है । यह स्थूल कथन है । उक्त अर्थको सूक्ष्मरूपसे सरलता से समझने के लिए उदयावलीके सोलह (१६) निषेकोकी कल्पना कीजिए और तदनुसार सत्तरहसे लेकर बत्तीस तक के निषेक दूसरी आवली कल्पना कीजिए । इस कल्पनाके अनुसार दूसरी आवलीके सत्तरहवें निषेकका द्रव्य अपकर्षण करके नीचे उदद्यावलीमे देना है, तो उक्त क्रमके अनुसार १६ मेसे एक कम करनेपर १५ रहे, उसमें ३ का भाग देनेपर प्रथम त्रिभाग पाँच हुआ । उसमे एक के मिलाने पर ६ होते हैं । प्रारम्भके इन ६ निषेकोमें उस अपवर्तित द्रव्यका निक्षेप होगा, इसलिए वे निषेक निक्षेपरूप कहे जाते हैं। शेष ७ से लेकर १६ तकके जो प्रथमावलीके निपेक हैं, उनमे उक्त द्रव्यका निक्षेप नही होगा, अतएव वे अतिस्थापनारूप कहे जाते हैं । यह जघन्य निक्षेप और जघन्य अतिस्थापनाका प्रमाण है । इससे ऊपर दूसरी आवलीके दूसरे निषेकका अपकर्षण किया, तब इसके नीचे एक समय अधिक आवलीमात्र सर्व निषेक हैं,
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