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English Translation (preserving Jain terms):
Ga.62] Determination of the Minimum and Maximum of the Five Aspects of Bondage 539
535. The minimum Sthiti-satkārma (duration-karma), Saṃkrama (transition), Udīraṇā (emanation), and Udaya (rise) of the Samyaktva (right faith) is one Sthiti (duration). 536. The minimum Sthiti-satkārma and Sthiti-udaya of the Samyaktva is the third one. 537. The remaining Sthiti-gāṇi (durations) of Samyaktva are innumerable times greater.
538. The minimum Sthiti-satkārma of Samyag-mithyātva (mixed right and wrong faith) is a little. 539. The Sthiti-satkārma of Samyag-mithyātva is enumerable times greater. 540. The minimum Sthiti-saṃkrama of Samyag-mithyātva is innumerable times greater. 541. The minimum Sthiti-udīraṇā of Samyag-mithyātva is innumerable times greater. 542. The minimum Sthiti-udaya of Samyag-mithyātva is particularly greater.
Explanation: Since the minimum Sthiti-bandha (duration-karma of bondage) of the completely pure Vādara (Jain ascetic) with one sense organ and complete development is considered to be less than the one-hundred-thousandth part of a Sāgaropama (ocean-measure).
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गा०६२] स्थित्यपेक्षया बन्धादि-पंचपद-अल्पबहुत्व-निरूपण ५३९
५३५. सम्मत्तस्स जहण्णगं हिदिसंतकम्मं संकमो उदीरणा उदयो च एगा द्विदी' । ५३६ जट्ठिदिसंतकम्मं जट्ठिदि-उदयो च तत्तियो चेव । ५३७. सेसाणि जट्ठिदिगाणि असंखेज्जगुणाणि ।
५३८. सम्मामिच्छत्तस्स जहण्णयं द्विदिसंतकस्म थोवं । ५३९. जट्ठिदि-. संतकम्म संखेज्जगुणं । ५४०. जहण्णओ हिदिसंकमो असंखेज्जगुणो । ५४१. जहणिया द्विदि-उदीग्णा असंखेज्जगुणा । ५४२. जहण्णओ हिदि-उदयो विसेसाहिओ।
विशेषार्थ-क्योकि, सर्वविशुद्ध वादर एकेन्द्रिय पर्याप्तकके पल्योपमके असंख्यातवें भागसे हीन सागरोपमप्रमाण जघन्य स्थितिवन्ध माना गया है।
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृतिका जघन्य स्थिति सत्कर्म, संक्रमण, उदीरणा और उदय एक स्थितिमात्र है। (अतः वक्ष्यमाण सर्वपदोकी अपेक्षा उनका प्रमाण सबसे कम है।) सम्यक्त्वप्रकृतिका जितना जघन्यस्थिति सत्कर्म है यस्थितिक-सत्कर्म और यस्थितिक-उदय भी उतना ही है । मम्यक्त्वप्रकृतिके यत्स्थितिक-उदयसे उसीके शेप यस्थितिक (उदीरणा आदि) असंख्यातगुणित होते है । क्योकि, उनका प्रमाण एक समयसे अधिक आवलीप्रमाण है ॥५३५-५३७॥
चूर्णिसू०-सम्यग्मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिसत्कर्म वक्ष्यमाण सर्व पदोकी अपेक्षा सबसे कम है । ( क्योंकि, उसका प्रमाण एक स्थितिमात्र । ) सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य स्थितिसत्कर्मसे उसीका यस्थितिक-सत्कर्म संख्यातगुणा है । ( क्योकि, उसका प्रमाण दो स्थितिप्रमाण है। ) सम्यग्मिथ्यात्वके यस्थितिकसत्कर्मसे उसीका जघन्य स्थिति-संक्रमण असंख्यातगुणा है । ( क्योकि, उसका प्रमाण पल्योपमके असंख्यातवें भाग है। ) सम्यग्मिथ्यात्वके जघन्य स्थिति-संक्रमणसे उसीकी जघन्य स्थिति-उदीरणा असंख्यातगुणी है। ( क्योकि, उसका प्रमाण कुछ कम सागरोपम है। ) सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य स्थिति-उदीरणासे उसीका जघन्य स्थिति-उदय विशेष अधिक है । (यह विशेषता केवल एक स्थितिमात्र है। ) ॥५३८-५४२॥
१ त जहा-कदकरणिजचरिमसमये सम्मत्तस्स जहण्णट्ठिदिसतकम्ममेगठिदिमेत्तमवलन्भदे। जहण्णद्विदि-उदयो वि तत्थेव गहेयव्यो । अथवा कदकरणिजचरिमावलियाए सव्वत्थेव जहणट्ठिदि-उदयो व समुवलन्मदे; तेत्तियमेत्तकालमेकिस्सेव ठ्दिीए उदयदसणादो। पुणो क्दकरणिजस समयाहियावलियाए सम्वत्थेव जहण्णट्ठिदि उदीरणा जण्णिया होइ, एगठिदिविसयत्तादो। सकमो वि तत्थेव गहेयव्वो। एवमेदेसिमेगछिदिपमाणत्तादो थोवत्तमिदि सिद्धः । जयध०
२ कुदो, कदकरणिजचरिमसमए तेसि पि एगछिदिपमाणत्तदसणादो । जयघ० ३ कुदो समयाडियावलियपमाणत्तादो । जयध० ४ कुदो, एगठिदिपमाणत्तादो। जयध० ५ कुदा, दुममयकालछिदिपमाणत्तादो । जयघ० ६ कुदो; पलिदोवमासखेज्जभागपमाणत्तादो । जयध० ७ कुदा, देसूणसागरावमपमाणत्तादो । जयध० ८ फेत्तियमेत्तो विसेसो १ एगछिदिमेत्तो ? किं कारण; उदयट्ठिदीए वि एत्य पवेसदसणादो ।
जयघ०