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Kasaya Pahuda Sutta
[6 Vedaka - Arthadhikara]
543. The minimum karmic duration of the twelve passions (kasayas) is two-and-a-half time units (samaya).
544. The maximum karmic duration of the twelve passions is innumerable times greater.
545. The minimum karmic transmigration of the twelve passions is innumerable times greater.
546. The minimum karmic bondage of the twelve passions is innumerable times greater.
547. The minimum karmic manifestation of the twelve passions is especially high.
548. The maximum karmic manifestation and arising of the twelve passions is especially high.
549. The minimum karmic manifestation and arising of the three samyaktva (right belief) passions is low.
550. The minimum karmic arising of the three samyaktva passions is innumerable times greater.
551. The maximum karmic arising and manifestation of the three samyaktva passions is innumerable times greater.
552. The minimum karmic bondage, karmic transmigration, and karmic duration of the three samyaktva passions are innumerable times greater.
553. ...
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कसाय पाहुड सुत्त
[ ६ वेदक- अर्थाधिकार
५४३. वारसकसायाणं जहण्णयं द्विदिसंतकम्मं थोवं । ५४४. जट्ठि दिसंतकम्मं संखेज्जगुणं' । ५४५. जहण्णगो द्विदिसंकमो असंखेज्जगुणो । ५४६. जहण्णगो बंधो असंखेज्जगुणो । ५४७. जहणिया डिदि उदीरणा विसेसाहियां । ५४८. जह- घणगो ठिदि उदयो विसेसाहियो ।
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५४०
५४९. तिन्हं संजलणाणं जहणिया ठिदि - उदीरणा थोवा । ५५०, जहण्णगो डिदि उदयो संखेज्जगुणो । ५५१ . जडिदि - उदयो जडिदि उदीरणा च असंखेज्जगुणो । ५५२. जहण्णगो ठिदिबंधो ठिदिसंकमो ठिदिसंतकम्मं च संखेज्जगुणाणि" । ५५३.
चूर्णिम् ० - अनन्तानुबन्धी आदि बारह कषायोका जघन्य स्थिति - सत्कर्म वक्ष्यमाण सर्व पढ़ोंकी अपेक्षा सवसे कम है । वारह कषायोके जघन्य स्थितिसत्कर्म से उन्हीका यत्स्थितिक सत्कर्म संख्यातगुणा है । बारह कषायोंके यत्स्थितिक सत्कर्मसे उन्ही का जघन्य स्थितिसंक्रमण असंख्यातगुणा है । वारह कषायोके जघन्य स्थितिसंक्रमण से उन्हीं का जघन्य स्थिति - वन्ध असंख्यातगुणा है । बारह कपायोके जघन्य स्थितिबन्धसे उन्हींकी जघन्य स्थितिउदीरणा विशेष अधिक है । बारह कपायोकी जघन्य स्थिति - उदीरणासे उन्हींका जघन्य स्थिति- उदय विशेष अधिक है ।।५४३-५४८ ॥
चूर्णिसू० क्रोधादि तीनो संज्वलन कषायोकी जघन्य स्थिति - उदीरणा वक्ष्यमाण सर्व पदोकी अपेक्षा सबसे कम है । ( क्योकि, वह एक स्थितिप्रमाण है । ) तीनो संज्वलनोकी जघन्य स्थिति-उदीरणासे उन्हीका जघन्य स्थिति - उदय संख्यातगुणा है । ( क्योकि, वह दो स्थितिप्रमाण है | ) तीनो संज्वलनोके जघन्य स्थिति - उदयसे उन्हीका यत्स्थितिक - उदय और यत्स्थितिक - उदीरणा असंख्यातगुणी है । ( क्योकि, उनका प्रमाण एक समय अधिक आवलीकाल है | ) तीनो संज्वलनकपायोके यत्स्थितिक - उदय और उदीरणासे उन्हीका जघन्य स्थितिवन्ध, जघन्य स्थितिसंक्रमण और जघन्य स्थितिसत्कर्म ये तीनो संख्यातगुणित हैं । ( क्योकि,
१ कुदो, एगठिदिपमाणत्तादो । जयध०
२ कुदो; दुसमयकालट्ठिदिपमाणत्तादो । जयध०
३ कुदो; पलिदोवमासंखेज भागपमाणत्तादो | जयध०
४किं कारणं; सव्वविसुद्धवादरेइ दियजहण्ण ठिदिवधस्स गहणादो । जयध०
५ कुदो; सच्वविसुद्ध वादरेइ दियस्स जहण्णट्ठिदि बधादो विसेसाहियहदसमुत्पत्तिय-जण ठिदिसतकम्मविसयत्तेण पडिलद्वजहण्णभावत्तादो । जयध०
६ केत्तियमेत्तो विमेसो ? एगटिट्ठदिमेत्तो । कुदो; उदयट्ठिदीए वि एत्यंत भावदसणादो | जय० ७ किं कारणं; एगट्ठदिपमाणत्तादो । जयध०
८ कुदो दोट्ठिदिपमाणत्तादो। णेदमसिद्धः तम्मि चैव विमए उदयदिदीए मह उदीरिजमाणट्रिट्ठदीए जहष्णोदयभावेण विवक्खियत्तादो । जयध०
९ कुदो; समयाहियावलियपमाणत्तादो । जयध०
१० कुदो; आवाहूण-वेमास मास - पक्खमाणत्तादो । किममाबाहार ऊत्तमेत्थ कीरदे ? ण, जहणवंघ - सतकम्माण णिसेयपहाणत्तावलंवणादो | जयध०