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English translation preserving Jain terms:
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Kasaya Pahuda Sutta [5 Sankrama-Arthadhikara 262. Eyadatthamavatthanam. 263. Sammatta-Sammamicchattanam Jahaniya Vaddhi Kassa? 264. Purvotpanna-Sammattado Dusamayuttara-Micchattasantakamio Sammattam Pativanno Tassa Vidiyasamaya-Sammadittissa Jahaniya Vaddhi. 265. Hani Sesakarma-Bhango. 266. Avatthanamukkasamgango.
267. Appabahukam. 268. Micchattha-Solasakaaya-Itthi-Purisaveda-Hasya-Ratinnam Savvatthopo Ukkasissiya Hani. 269. Vaddhi Avatthanam ca Dovi Tullhani Visesahiyani. 270. Sammatta-Sammamicchattanam Savvatthopo Avatthanasanko. 271. Hanisankamo Asankhejjaguno. 272. Vaddhisankamo Visesahio. 273. Navasayaveda-Arai-Soga-Bhaya
Clarification:
1. The jaggery (jaggery) of the growth and decline of the two karmas (Sammatta and Sammamicchatta) is up to the last muhurta (moment).
2. The reason is that after acquiring the first moment of Vedaka-Sammatta, the two-moment-later Micchatta-Sthiti is accepted, and there itself the second moment Sammatta is attained.
3. The reason is that it is less than a hundred thousand crores of Sagaropama (ocean-measure) periods.
4. How much is the difference? It is up to a hundred thousand crores.
5. This is the measure of that acceptance.
6. It is the measure of the destruction of the highest state.
7. How much is it? It is up to a hundred thousand crores.
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कसाय पाहुड सुत्त [५ संक्रम-अर्थाधिकार २६२. एयदरत्थमवट्ठाण । २६३. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं जहणिया वड्डी कस्स १ २६४. पुव्वुप्पण्णसम्मत्तादो दुसमयुत्तरमिच्छत्तसंतकस्मिओ सम्मत्तं पडिवण्णो तस्स विदियसमयसम्माइद्विस्स जहणिया वड्डी' । २६५, हाणी सेसकस्मभंगो । २६६. अवठ्ठाणमुक्कस्सअंगो।
२६७. अप्पाबहुअं । २६८. मिच्छत्त-सोलसकसाय-इत्थि-पुरिसवेद-हस्स-रदीणं सव्वत्थोवा उक्कस्सिया हाणी । २६९.वड्डी अवठ्ठाणं च दोवि तुल्हाणि विसेसाहियाणि । २७०. सम्मत्त-सम्मामिच्छत्ताणं सव्वत्थोपो अवट्ठाणसंकों। २७१. हाणिसंकमो असंखेज्जगुणों । २७२. वड्विसंकमो विसेसाहिओं । २७३. णव॒सयवेद-अरइ-सोग-भय
चूर्णिसू०-उन ही पूर्वोक्त कर्मोंकी अन्तमुहूर्तकाल तक अवस्थित उत्कृष्ट वृद्धि या हानिमेंसे किसी एक स्थितिमे जघन्य अवस्थान पाया जाता है । यहाँ इतना विशेष जानना चाहिए कि ये जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान एक स्थितिमात्र ही होते है ।।२६२।।
शंका-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्वकी जघन्य वृद्धि किसके होती है ?।।२६३॥
समाधान-पूर्वोत्पन्न सम्यक्त्वसे ( गिरकर और दो समय अधिक मिथ्यात्वकी स्थितिको वाँध कर ) द्विसमयोत्तर मिथ्यात्वसत्कर्मिक होकर जो सम्यक्त्वको प्राप्त हुआ है उस द्विसमयवर्ती सम्यग्दृष्टिके उक्त दोनों कर्मोंकी जघन्य वृद्धि होती है ॥२६४॥
चूर्णिसू०-उक्त दोनो कर्मोंकी हानि शेप कर्मोंकी हानिके समान जानना चाहिए दोनो कर्मोंका अवस्थान अपने-अपने उत्कृष्ट अवस्थानके सदृश होता है ॥२६५-२६६।।
चूर्णिसू०-अव उपयुक्त उत्कृष्ट जघन्य वृद्धि, हानि और अवस्थान संक्रमणोके प्रमाणका निर्णय करनेके लिए अल्पबहुत्व कहते है-मिथ्यात्व, सोलह कपाय, स्त्रीवेद, पुरुपवेद, हास्य और रति, इन कर्मोंकी उत्कृष्ट हानि सबसे कम होती है। इन कर्मोंकी उत्कृष्ट हानिसे इन्ही कर्मों की वृद्धि और अवस्थान ये दोनों परस्पर तुल्य और विशेप अधिक हैं ॥२६७-२६९।।
चूर्णिसू०-सम्यक्त्वप्रकृति और सम्यग्मिथ्यात्व, इन दोनों कर्मों का अवस्थान-संक्रमण सबसे कम है। इससे इन्ही कर्मोंका हानि-संक्रमण असंख्यातगुणा है और इससे वृद्धिसंक्रमण विशेष अधिक है ।।२७०-२७२।।
१ कथ ताव वड्डीए अवठाणसभवो ? वुच्चदे-समयूणुक्कस्सटिदिसंकमादो उक्कस्सछिदिस कमेण वड्ढिदस्स अतोमुहुत्तमवदिवधवसेण तत्थेवावट्ठाणे णत्थि विरोहो । जयध०
२ कुदो; वेदगसम्मत्तग्गहणपढमसमए दुसमयुत्तरमिच्छत्तछिदि पडिच्छिय तत्थेवाधट्ठिदीए णिसे. यमेत गालिय विदियसमए पढमसमयसकमादो समयुत्तर सकामेमाणयम्मि जहण्णवुड्ढीए एयसमयमेत्तो मुव. लंभादो । जयध०
३ कुदो; अतोकोडाकोडिपरिहीणसत्तरि-चालीससागरोवमकोडाकोडिपमाणत्तादो । जयध० ४ केत्तियमेत्तो विसेसो ? अंतोकोडाकोडिमेत्तो। ५ एयणिसेयपमाणत्तादो । जयव० ६ उक्कस्सद्विदिखडयपमाणत्तादो। ७ केत्तियमेत्तेण ? अतोकोडाकोडिमेत्तेण | जयध०