SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 408
Loading...
Download File
Download File
Translation AI Generated
Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
203. The duration of the twenty-one prakruti (nature) samkramana (transformation) is as follows: 1. The duration of the minimum (jaghanya) time of the twenty-one prakruti samkramana is one samaya (instant). A being with twenty-four prakrutis, after the subsidence of the three types of mana (pride) kashayas (passions), attains the state of an upashamaka (one in whom the kashayas have subsided) in the first samaya and dies in the next samaya, taking birth in the celestial realm. 2. The maximum (utkrishta) duration of the twenty-one prakruti samkramana is measured from the time the two middle mohaniya (deluding) kashayas (of mithyatva and samyag-mithyatva) subside until they arise again, which is an antarmuhurta (less than 48 minutes).
Page Text
________________ ३०० कसाय पाहुड सुत्त [ ५ संक्रम-अर्थाधिकार २०३. एक्कवीसाए संकामओ केवचिरं कालादो होइ १ २०४, जहणेणेय - इस प्रकार है - चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई उपशामक प्रथम समयमें तीन प्रकारके मान कषायके उपशमसे परिणत हुआ और दूसरे ही समय में मरण करके देवोमें उत्पन्न हो गया । इस प्रकार प्रकृत संक्रमस्थानका एक समयमात्र जघन्यकाल सिद्ध हो जाता है । इसी जीवके दोनो मध्यम मायाकपायोका उपशमन करते हुए जब तक उनका अनुपशम रहता है तब तकका अन्तर्मुहूर्तमान काल प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । पांच- प्रकृतिक संक्रमस्थानके कालका विवरण इस प्रकार है - इसी उपयुक्त सात प्रकृतियो के उपशामक के द्वारा दोनो मध्यम मायाकपायोका उपशमन करके एक समय पांच प्रकृतियोका संक्रामक वनकर और दूसरे समयमे मर करके देव हो जाने पर एक समयमात्र प्रकृत संक्रमस्थानका जघन्य काल प्राप्त हो जाता है । इक्कीस प्रकृतियोकी सत्तावाले उपशामक के द्वारा तीन प्रकारके मानकी उपशामनासे परिणत होकर जब तक दोनो मध्यम माया कपायोका अनुपशम रहता है, तब तकका अन्तर्मुहूर्तमात्र काल प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । चार प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है- चौवीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक उपशामक संज्वलन - मायाका उपशमन करके चार प्रकृतियोका संक्रामक हुआ और दूसरे ही समय मे मरकर देव हो गया, इस प्रकार प्रकृत संक्रमस्थानका एक समयमात्र जघन्य काल प्राप्त हो जाता है । इसी उपशामकके संज्वलनमायाके उपशमकालसे लेकर जबतक दोनों मध्यम लोभोका अनुपाम रहता है, तबतकका अन्तर्मुहूर्तमात्र काल प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । तीन-प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है - इक्कीस प्रकृतियो की सत्तावाला कोई एक उपशामक दोनो मध्यम मायाकपायोकी उपशामनासे परिणत होकर तीन प्रकृतियोका संक्रामक हुआ और दूसरे समयमे मरकर देव हो गया । इस प्रकार एक समयमात्र प्रकृत संक्रमस्थानका जघन्य काल सिद्ध हो जाता है | चारित्रमोहका क्षपण करनेवाले जीवके संज्चलनक्रोधके क्षपणका जितना काल है, वह सब प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । दो- प्रकृतिक संक्रमस्थानके जघन्य और उत्कृष्ट कालका विवरण इस प्रकार है - चौबीस प्रकृतियोकी सत्तावाला कोई एक उपशामक आनुपूर्वी संक्रमण आदिकी परिपाटीसे दोनो प्रकारके मध्यम लोभका उपशमन करके मिध्यात्व और सम्यग्मिथ्यात्वका एक समय संक्रामक होकर दूसरे समयमे मरकर देव हो गया । इस प्रकार प्रकृत संक्रमस्थानका जघन्य काल प्राप्त हो जाता है । इसी जीवके दोनों मध्यम क्रोधोके उपशमन - कालसे लगा करके उपशान्तकपायगुणस्थानसे उतरते हुए सूक्ष्मसाम्परायगुणस्थानके अन्तिम समय तकका जितना काल है, वह सब प्रकृत संक्रमस्थानका उत्कृष्ट काल जानना चाहिए । शंका- इक्कीस प्रकृतिक संक्रमस्थानका कितना काल है ? || २०३ ॥
SR No.010396
Book TitleKasaya Pahuda Sutta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorHiralal Jain
PublisherVeer Shasan Sangh Calcutta
Publication Year1955
Total Pages1043
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size71 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy