Disclaimer: This translation does not guarantee complete accuracy, please confirm with the original page text.
Translation preserving Jain terms:
238. Kasaya Pahuda Sutta [7. In the case of a single samayaprabaddha, there is a definite rule regarding the maximum duration of the anavadya (blemishless) state.
23. The maximum utkrsta (highest) anavadya state of a single samayaprabaddha is how many times greater than the minimum anavadya state of that same samayaprabaddha? 24. The illustration of this. 25. As follows. 26. The duration of the avahara (expulsion) of karma by uddharana-avakarsana (raising and lowering) is small. 27. The duration of the avahara of karma by adhahpravrttisamkramana (downward movement) is asankhyeya (innumerable) times greater. 28. The duration of the avahara of karma by uddharanaukarsana (raising and lowering) is one asankhyatabhaga (innumerable part) of a palya. 29. Similarly, the maximum utkrsta anavadya state is how many times greater than the minimum anavadya state of that same samayaprabaddha?
30. Now, whose is this maximum utkrsta anavadya state? 31. It is of the nairayika (hell-being) of the seventh bhumi (ground/plane). The duration of his maximum anavadya state is described as being more than the time taken for his origination. His minimum anavadya state is also described. 32. During this time, he frequently attains the tapprayogya (appropriate) utkrsta yogastanas (yogic stations). 33. With the increase in the tapprayogya utkrsta states...
________________
२३८
कसाय पाहुड सुत्त [७ स्थितिक-अधिकार समयपबद्धस्स अधाणिसेओ णियमा अस्थि ।
२३. एक्कस्स समयपनद्धस्स एक्किस्से हिदीए जो उक्कस्सओ अधाणिसेओ तत्तो केवडिगुणं उक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं १ २४. तस्स णिदरिसणं । २५. जहा । २६. ओकड्डक्कड्डणाए कम्मरस अवहारकालो थोवो । २७. अधापवत्तसंक्रमेण कम्मस्स अवहारकालो असंखेज्जगुणो । २८. ओकड्डुक्कड्डणाए कम्मस्स जो अवहारकालो सो पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो । २९. एवदिगुणमेकस्स समयपवद्धस्स एकिस्से द्विदीए उक्कस्सयादो जहाणिसेयादो उक्कल्सयमधाणि सेयडिदिपत्तयं ।
३०. इदाणिमुक्कस्सयमधाणिसेयहिदिपत्तयं कस्स १ ३१. सत्तमाए पुढवीए णेरइयस्स जत्तियमधाणिसेयहिदिपत्तयमुक्कस्सयं तत्तो विसेसुत्तरकालमुववण्णो जोणेरइओ तस्स जहण्णेण उक्कस्सययधाणिसेयद्विदिपत्तयं ३२. एदम्हि पुण काले सो रहओ तप्पाओग्गुकिस्सयाणि जोगट्ठाणाणि अभिक्खं गदो । ३३. तप्पाओग्गउक्कस्सियाहि वड्डीहि
शंका-विवक्षित स्थितिसे एक समय अधिक जघन्य आवाधाकालप्रमाण नीचे आकर उत्कृष्ट योगसे बँधा हुआ जो एक समयप्रवद्ध है, उसकी एक स्थितिमे अर्थात् जघन्य आवाधाके वाहिर स्थित स्थितिमे जो उत्कृष्ट यथानिपेक प्रदेशाग्र है, उससे पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण अपने उत्कृष्ट संचयकालके भीतर गलनेसे अवशिष्ट रहे हुए नानासमयप्रवद्धोका जो यथानिपेकस्थितिको प्राप्त हुआ उत्कृष्ट प्रदेशाग्र है, वह कितना गुणा अधिक है ? ॥२३॥
समाधान-इस गुणाकारको एक निदर्शन ( उदाहरण ) के द्वारा स्पष्ट करते है। वह इस प्रकार है-एक समयमे जो कर्मप्रदेशाग्र उद्वर्तना-अपवर्तनाकरणके द्वारा उद्वर्तित या अपवर्तित होता है, उसके प्रमाण निकालनेका जो अवहारकाल है, वह वक्ष्यमाण अवहारकालसे थोड़ा है। उद्वर्तनापवर्तनाकरणके अवहारकालसे अधःप्रवृत्तसंक्रमणकी अपेक्षा कर्मका अवहारकाल असंख्यातगुणा है। उद्वर्तनापवर्तनाकरणकी अपेक्षा कर्मका जो अवहारकाल है, वह पल्योपमके असंख्यातवे भागप्रमाण है। इतना गुणा है, अर्थात् एक समयप्रबद्ध की एक स्थितिके उत्कृष्ट यथानिषेकसे उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त कर्मप्रदेशाग्र जितना यह उद्वर्तनापवर्तनाकरणकी अपेक्षा कर्मका अवहारकाल है, इतना गुणा अधिक है ।।२४-२९॥
शंका-उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥ ३० ॥
समाधान-वह उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र सातवी पृथिवीके नारकीके होता है। किस प्रकारके नारकीके होता है, इसका स्पष्टीकरण यह है कि जितना काल उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिप्राप्त प्रदेशाग्रका है, उससे उत्तरकालमे उत्पन्न हुआ जो नारकी है, उसके उत्पत्तिके समयसे जघन्य अन्तर्मुहूर्तसे अधिक होनेपर, अर्थात् सर्वलघुकालसे पर्याप्त होनेपर उत्कृष्ट यथानिपेकस्थितिको प्राप्त प्रदेशाग्र होता है। पुनः वह नारकी इस यथानिपेकसंचयकालके भीतर तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट योगस्थान को वार-वार प्राप्त हुआ, तथा तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट वृद्धियोसे वृद्धिको प्राप्त होता हुआ उस स्थितिके निपेकके उत्कृष्ट पदको प्राप्त हुआ।