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कसाय पाहुड सुत्त [ ६ क्षीणाक्षीणाधिकार णवरि मायाडिदिकंडयं चरिमसमयअसंछुहमाणयस्स तस्स चत्तारि वि उक्कस्सयाणि झीणद्विदियाणि ।
७९. लोहसंजलणस्स उकस्सयमोकड्डणादितिण्हं पि झीणद्विदियं कस्स ? ८०. गुणिदकम्मंसियस्स सव्वसंतकम्ममावलियं पविस्समाणयं पविलु ताधे उक्कस्सयं तिण्हं पि झीणद्विदियं । ८१. उक्कस्सयमुदयादो झीणहिदियं कस्स ? ८२. चरिमसमयसकसायखवगस्स।
८३. इस्थिवेदस्स उकस्सयमोकड्डणादिचउण्हं पि झीणट्ठिदियं कस्स ? ८४. इस्थिवेदपूरिदकम्मंसियस्स आवलियचरिमसमयअसंछोहयस्स तिणि वि झीणद्विदियाणि उक्कस्सयाणि । ८५. उकस्सयमुदयादो झीणद्विदियं चरिमसमयइत्थिवेदक्खवयस्स ।
८६. पुरिसवेदस्स उक्कस्सयमोकड्डणादिचदुण्हं पि झीणहिदियं कस्स ? ८७. है, उस समय उसके अपकर्षणादि चारोकी ही अपेक्षा संज्वलनमायाका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है ।।७६-७८॥
शंका-संज्वलनलोभका अपकर्षणादि तीनोकी अपेक्षा उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशान किसके होता है ? ॥७९॥
समाधान-जिस गुणितकर्माशिक जीवने संज्वलनलोभके प्रविश्यमान सर्व सत्कमको जिस समय उदयावलीमें प्रविष्ट कर दिया, उस समय उसके अपकर्पणादि तीनोकी अपेक्षा संज्वलनलोभका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है ।। ८०॥
शंका-उदयकी अपेक्षा संज्वलनलोभका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥८१॥
समाधान-चरमसमयवर्ती सकपाय आपकके होता है ।। ८२।।
शंका-स्त्रीवेदका अपकर्पणादि चारोकी अपेक्षा उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र किसके होता है ? ॥८३॥
समाधान-गुणितकर्माशिकरूपसे आकर जो जीव स्त्रीवेदको पूरण कर रहा है, और एक समय कम आवलीके अन्तिम समयमे असंक्षोभकभावसे अवस्थित है, उसके अपकर्पणादि तीनोकी अपेक्षा स्त्रीवेदका उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र होता है। किन्तु उदयकी अपेक्षा स्त्रीवेदका उत्कृष्ट क्षीणस्थितक प्रदेशाग्र उस चरमसमयवर्ती त्रीवेदी क्ष्पकके होता है, जो कि एक समय कम आवलीमात्र स्थितियोको गला करके अवस्थित है और उसके जिस समय प्रथमस्थितिका चरम निपेक उदयको प्राप्त हुआ है, उस समय उसके खीवेदका उदयकी अपेक्षा उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्न होता है ।।८४-८५।
शंका-पुरुपवेदका अपकर्पणादि चारोकी अपेक्षा उत्कृष्ट क्षीणस्थितिक प्रदेशाग्र किसके होना है १ ॥८६॥