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## Kasaya Pahud Sutta [6]
**15.** If one time has passed since the binding of the *padesagg* in the *samyahiya* *udayavali* of two *di*, it is *avathu*, meaning the *padesagg* is not in that intended state. If two times have passed, it is also *avathu*. If three times have passed, it is also *avathu*. And so on, if one *avali* has passed since the binding, it is also *avathu*.
**16.** If more than one *avali* has passed since the binding of the *padesagg* in the *samyahiya* *udayavali*, it is an *adeso*, meaning the *padesagg* could be in that intended state.
**17.** However, the *padesagg* cannot be discarded if it is a *karma-hi* (karma-based). It can be discarded if it is less than the *samyahiya* *avali*.
**18.** These are the *viyappa* (alternatives) for the *padesagg* in the *samyahiya* *udayavali* of two *di*.
**19.** These are the *viyappa* for the *padesagg* in the *dusamyahiya* *udayavali* of two *di*.
**20.** In this way, one should know all the *viyappa* for the *padesagg* in the *trisamyahiya*, *chadusamyahiya*, and all the *avali* up to one *avali* less than the *avadaha* time.
**21.** What are the *viyappa* for the *padesagg* in the *samyahiya* *avali* of two *di* if the *avali* is less than the *avadaha* time?
**22.** There are no *viyappa* for the *padesagg* in the *samyahiya* *avali* of two *di* if the *karma-hi* has passed before the *avali* less than the *samyahiya* *avali*.
**23.** If the...
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कसाय पाहुड सुत्त [६ क्षीणाक्षीणाधिकार १५. समयाहियाए उदयावलियाए तिस्से चेव द्विदीए पदेसग्गस्स एगी समओ पवद्धस्स अइच्छिदो त्ति अवत्थु, दो समया पबद्धस्स अइच्छिदा त्ति अवत्थु, तिण्णि समया पद्धस्स अइच्छिदा त्ति अवत्थु, एवं णिरंतरं गंतूण आवलिया पबद्धस्स अइच्छिदा त्ति अवत्थु । १६. तिस्से चेव हिदीए पदेसग्गस्स समयुत्तरावलिया बद्धस्म अइच्छिदा त्ति एसो आदेसो' होज । १७. तं पुण पदेसग्गं कम्महिदि णो सक्का उक्कड्डिदु, समयाहियाए आवलियाए ऊणियं कम्महिदि सक्का उक्कड्डिदु। १८. एदे वियप्पा जा समयाहिय-उदयावलिया, तिस्से द्विदीए पदेसग्गस्स । १९. एदे चेय वियप्पा अपरिसेसा जा दुसमयाहिया उदयावलिया, तिस्से द्विदीए पदेसग्गस्स । २०. एवं तिसमयाहियाए चदुसमयाहियाए जाच आवाधाए आवलियूणाए एवदिमादो त्ति ।
२१. आवलियाए समयूणाए ऊणियाए आवाहाए एवदिमाए द्विदीए जं पदेसग्गं तस्स के वियप्पा ? २२. जस्त पदेसग्गस्स* समयाहियाए आवलियाए ऊणिया कम्महिदी विदिक्कता तं पि पदेसग्गमेदिस्से द्विदीए णत्थि । २३. जस्स
चूर्णिसू०-जो पूर्वमे आदिष्ट अर्थात् विवक्षित समयाधिक उदयावलीकी अन्तिम स्थिति है, उस ही स्थितिके प्रदेशाग्रका बंधने के समयसे यदि एक समय अतिक्रान्त हुआ है, तो वह अवस्तु है, अर्थात् उसके प्रदेशाग्र इस विवक्षित स्थितिमे नहीं है। यदि दो समय वन्धकालसे व्यतीत हुए है, तो वह भी अवस्तु है । इस प्रकार निरन्तर आगे जाकर यदि वन्धकालसे एक आवली व्यतीत हुई है, तो वह भी अवस्तु है, अर्थात् तत्प्रमाण कर्मप्रदेशाग्रोका उत्कर्पण नहीं किया जा सकता है । यदि उस ही विवक्षित स्थितिके प्रदेशाग्रकी वन्धकालसे आगे समयाधिक आवली व्यतीत हुई है, तो वह आदेश होगी, अर्थात् उसके कर्म-प्रदेशाग्रोका विवक्षित स्थितिमे वस्तुरूपसे अवस्थित होना सम्भव है। यदि वह प्रदेशाग्र कर्मस्थिति प्रमाण हैं, तो उनका उत्कर्पण नही किया सकता है । और यदि समयाधिक आवलीसे कम कर्मस्थितिप्रमाण है, तो उनका उत्कर्पण किया जा सकता है । जो समयाधिक उदयावली है, उसकी स्थितिके कर्मप्रदेशाग्रके ये सव विकल्प है । जो द्विसमयाधिक उदयावली है, उसकी स्थितिके कर्मप्रदेशाग्रके भी ये सब सम्पूर्ण विकल्प जानना चाहिए । इस प्रकार त्रिसमयाधिक, चतुःसमयाधिकसे लगाकर एक आवलीसे कम आवाधाकाल तक ये सर्व विकल्प जानना चाहिए ॥ १५-२० ।।
शंकाचू०-एक समय-कम आवलीसे हीन आवाधाकी इस मध्यवर्ती स्थितिम जो कर्म-प्रदेशाग्र है, उसके कितने विकल्प हैं ॥२१॥
समाधानचू०-जिस प्रदेशाग्रकी समयाधिक आवलीसे कम कर्मस्थिति बीत चुकी १ आदिश्यत इत्यादेशो विवक्षितस्थिती वस्तुरूपेणावस्थितः प्रदेश आदेश इति यावत् । जयध०
६ ताम्रपत्रवालो प्रतिमें 'पदेसग्गस्स' पद नहीं है, पर पूर्वापर सन्दर्भको देखते हुए यह पद होना चाहिए । ( देखो पृ० ८८४)