________________
( ८२ )
कांति अब मैं तुम तो ...
निरंजना यही न कि तुमने हमें बढ़िया से बढ़िया साड़ियों में लिपटे देखा है, जड़ाऊ गहनों से लदे देखा है, घर में नौकरों से घिरे
और बाहर मोटरों पर चढ़े देखा है । बस, समझ लिया कि संसार का सारा सुख यही लूट रही हैं।
कांति (विशेष उत्सुकता से ) क्या हो गया है तुम्हें आज !
निरंजना ( पूर्ववत् ) सच बताना, तुम इन्हीं बातों को देखकर तो कहती हो कि बड़े घर की लड़की है, बड़े घर की बहू है या और कुछ देख समझकर ?
कांति और देखे भी क्या कोई ? किसी के घर का हाल क्या मालूम किसी को
निरंजना यही तो कहती हूँ कि भीतर की बात जानती तो शायद तुम धनियों की स्त्रियों पर दया करती ; उनको संसार का सबसे निराश्रय प्राणी समझ तीं।